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समर्पण
मुधारप्रिय, उदारहृदय, विद्या-साहित्य-प्रेमी. साहित्योद्धारक,
गुणिजनानुगगी, गुण-ग्राहक, मत्कार्य-सहायक, सच्चे अर्थोंमे दानवीर, समाजके महान् मेवक, धम-कर्ममे निष्ठावान्, मदहित, लोकहितैषी, सरल-सौम्य-प्रकृति और अपने प्रिय बन्धुवर श्री साहू शान्तिप्रसादजी जैनको यह लोकहितानुरूपा कृति
सादर समर्पित ।
जुगल विशोर मुरन्तार