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________________ भारतकी स्वतन्त्रता, उसका झडा और कर्त्तव्य ४२५ कितनी ही बातें इनमे ऐसी भी हो सकती हैं जो अभी इतिहासके गर्भ में हैं और जि हे आगे चलकर किसी समय इतिहास प्रकट करेगा । परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि यह चक्र बड़ा ही महत्वपूर्ण है, भारतकी प्राचीन संस्कृतिका द्योतक है और उसकी विजयका चिन्ह है । इसीसे विजयके अवसर पर उसे राष्ट्रीय पताकामें धारण किया गया है। वह जहाँ धार्मिक चक्रवतियोकी धम विजयका और लौकिक चक्रवतियोकी लोक-विजयका चि ह रहा है वहीं वर्तमान मशीन-युगके भी वह अनुरूप ही है और उसका प्रधान अग है। नई पुरानी अधिकाश मशीने चक्रोसे ही चलती है-चक्रके बिना उनकी गति नहीं। यदि चक्रका उपयोग बिल्कुल बन्द कर दिया जाय तो प्राय सारा यातायात और उत्पादन एकदम रुक जाय । क्योकि रथ, गाड़ी, ताङ्गा, मोटर, साईकिल, रेल, एजन, जहाज, रहट, चाक, चर्खा, चीं, कर्घा और कल-मिल आदि सभी साधनोमें प्राय चक्रका उपयोग होता है, और इसलिये चक्रको श्रमजीवन तथा श्रमोन्नतिका प्रधान प्रतीक भी समझना चाहिये,जिसके बिना सारा संसार बेकार है। अत जब तक अशोकचक्रको, जिसमे थोडासा परिवर्तनभी किया जान पड़ता है, प्रतिष्ठित करनेवाले अधिकारियो-द्वारा इसके रहस्यका उद्घाटन नहीं किया जाता तब तक सर्व साधारण जन इस चक्रमे सूर्यकी, सुदर्शनचक्रकी, जैन तथा बौद्धोके धर्मचक्रोमेसे किसीकी, वर्तमान युगके मशीनी चक्रकी अथवा सभीके समावेशकी कल्पना कर सकते हैं और तदनुफूल उसका दर्शन भी कर सकते हैं। परन्तु मुझे तो गोककी दृष्टिसे इस चक्रका मध्यवृत्त ( बीचका गोला ) समता ( शान्ति ) और ज्योति ( ज्ञान ) का प्रतीक जान पडता है, बाह्यवृत्त संसारकी-मध्यलोककी अथवा जम्बूद्वीपकी परिधिके रूपमें प्रतीत होता है, संसारमें समता और ज्योतिका प्रसार जिन २४ किरणो-द्वारा हुमा तथा होरहा है वे मुख्यत ऋष.
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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