SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 429
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१२ युगवीर-निबन्धावलो जानता हूँ जिसने पांच हजारका ही दान दिया है, उससे आपका यह दस हजारका दानी बड़ा दानी है। इस तरह दस हजारका दानी एककी अपेक्षासे बडा दानी और दूमरेकी अपेक्षामे छोटा दानी है, तदनुसार पाँच लाखका दानी भी एककी अपेक्षासे बडा और दूसरेकी अपेक्षामे छोटा दानी है। ____ अध्यापक-हमारा मतलब यह नही जैमा कि तुम समझ गये हो. दूसरोकी अपेक्षाका यहाँ कोई प्रयोजन नहीं। हमारा पूछनेका अभिप्राय सिर्फ इतना ही है कि क्या किमी तरह इन दोनो दानियोमेसे पाँच लाखका दानी दस हजारके दानीमे छोटा ग्रोर दस हजार. का दानी पाँच लाखके दानीसे बडा दानी हो सकता है ? और तुम उसे स्पष्ट करके बतला सकते हो ? विद्यार्थी-यह कैसे हो सकता है ? यह तो उमी तरह असभव है जिस तरह पत्थरको शिला अथवा लोहेका पानी पर तैरना । ___ अध्यापक-पत्थरकी शिलाको लकडीके स्लीपर या मोटे तख्ते पर फिट करके अगाध जलमे तिराया जा सकता है और लोहेकी लुटिया, नौका अथवा कनस्टर बनाकर उमे भी तिराया जा मकता है । जब युक्तिमे पत्थर और लोहा भी पानी पर तैर सकते है और इसलिये उनका पानी पर तैरना सर्वथा अमभव नहीं कहा जासकता, तब क्या तुम युक्तिसे दस हजारके दानीको पाँच लाखके दानीसे बड़ा सिद्ध नहीं कर सकते। यह सुनकर विद्यार्थी कुछ गहरी मोचमे पड गया और उससे शीघ्र कुछ उत्तर न बन सका । इस पर अध्यापकमहोदयने दूसरे विद्याथियोसे पूछा-'क्या तुममसे कोई ऐमा कर सकता है ?' वे भी सोचते-से रह गये। और उनसे भी शीघ्र कुछ उत्तर न बन पडा । तब अध्यापकजी कुछ कडककर बोले 'क्या तुम्हे तत्त्वार्थसूत्रके दान-प्रकरणका स्मरण नहीं है ? क्या तुम्हे नहीं मालूम कि दानका क्या लक्षरण है और उस लक्षणसे गिर
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy