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________________ बड़ेसे छोटा और छोटेसे बड़ा ३६६ अनेक विषयोमे 'बडा' है, उन्होने अपने विवक्षित अर्थके अनुसार उसे उस समय 'छोटा' कहा है । इस कथनमे दोषकी कोई बात नही है। तुम्हारे हृदयमे शायद यह प्रश्न उठ रहा है कि जब मोहनमें छोटापन और बडापन दोनो थे तब जिनदासजीने उसे छोटा क्यो कहा, बड़ा क्यो नही कह दिया ? इसका उत्तर इतना ही है किमोहन उम्रमे, कदमे, रूपमें, बलमें, विद्यामे, चतुराईमे और प्राचारविचारमे बहुतोसे छोटा है और बहुतोसे बड़ा है । जिनदासजी को जिसके साथ जिस विषय अथवा जिन विषयोमे उसकी तुलना करनी थी उस तुलनामे वह छोटा पाया गया, और इसलिये उन्हे उस समय उसको छोटा कहना ही विवक्षित था, वही उन्होने उसके विषयमे कहा । जो जिस समय विवक्षित होता है वह 'मुख्य' कहलाता है और जो विवक्षित नहीं होता वह 'गौरण' कहा जाता है। मुख्य-गौरकी इस व्यवस्थासे ही वचन-व्यवहारकी ठीक व्यवस्था बनती है। अत जिनदासजीके उक्त कथनमे दोषापत्तिके लिये कोई स्थान नहीं है। अनेकान्तके प्रतिपादक स्याद्वादियोका 'स्यात्' पदका प्राश्रय तो उनके कथनमे अतिप्रसग जैसा गडबड-घुटाला भी नही होने देता । बहुतसे छोटेपनो और बहुतसे बडेपनोमे जो जिस समय कहनेवालेको विवक्षित होता है उसीका ग्रहण किया जाता है-शेषका उक्त पदके आश्रयसे परिवर्जन (गौरगीकरण) हो जाता है । ... ___अध्यापक वीरभद्रजीकी व्याख्या अभी चल ही रही थी कि इतने मे घटा बज गया और वे दूसरी कक्षामे जानेके लिये उठने लगे। यह देखकर कक्षाके सब विद्यार्थी एकदम खडे हो गये और अध्यापकजीको अभिवादन करके कहने लगे-'अाज तो आपने तत्त्वज्ञानकी बडी बड़ी गभीर तथा सूक्ष्म बातोको ऐसी सरलता और सुगमरीतिसे बातकी बातमे समझा दिया है कि हम उन्हे जीवनभर भी नहीं भूल सकते । इस उपकारके लिये हम आपके प्राजन्म ऋणी रहेगे।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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