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________________ घोटापन पौर बडापन ३६१ पौर बड़ी भी, एक प्रकारसे छोटी है-दूसरे प्रकारसे बडी है, अमुककी अपेक्षा छोटी पौर अमुककी अपेक्षा बड़ी हे प्रथवा कथचित् छोटी और बड़ी दोनो है।' मौर उसका यह वचन-व्यवहार एकान्तकदाग्रहकी ओर न जाकर वस्तुका ठीक प्रतिपादन करनेके कारण 'सच्चा' कहा जाता है । मैं समझता हूँ कि अब तुम इस विषयको मोर अच्छी तरहसे समझ गये होगे। विद्यार्थी-(पूर्ण सन्तोष व्यक्त करते हुए) हां, बहुत अच्छी तरहसे समझ गया है। पहले समझनेमें जो कचाई रह गई थी वह भी अब आपकी इस व्याख्यासे दूर हो गई है । आपने मेरा बहुत कुछ अज्ञान दूर किया है, और इसलिये मैं आपके आगे नतमस्तक हूँ। अध्यापक वीरभद्रजी अभी इस विषय पर और भी कुछ प्रकाश मलना चाहते थे कि इतनेमें घटा बज गया और उन्हें दूसरी कक्षानाना पड़ा।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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