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________________ छोटापन और बडापन ३८६ नीचेकी दोनो बडी-छोटी लाइनोंको यदि मिटा दिया जाय और मध्यकी उस न० १ वाली लाइनको ही स्वतन्त्र रूपमें स्थिर रक्खा जाय- दूसरी किसी भी बडी-छोटी चीज़ के साथ उसकी तुलना या अपेक्षा न की जाय, तो ऐसी हालतमे तुम इस लाइन नं० १ को स्वतन्त्रभावसे-कोई भी अपेक्षा अथवा दृष्टि साथमें न लगाते हुए-छोटी कहोगे या बड़ी" विद्यार्थी-ऐसी हालतमे तो मैं इसे न छोटी कह सकता हूँ और न बडी। अध्यापक-अभी तुमने कहा था 'इसमें दोनो ( छोटापन और बडापन) गुरण एक साथ हैं' फिर तुम इसे छोटी या बड़ी क्यो नही कह सकते ? दोनो गुरगोको एक साथ कहनेकी वचनमे शक्ति ने होनेसे यदि युगपत् नही कह मकते तो क्रमसे तो कह सकते हो ? वे दोनो गुण कही चले तो नहीं गये १ गुणोका तो प्रभाव नहीं हुआ करता--भले ही तिरोभाव (आच्छादन) हो जाय, कुछ समयके लिये उनपर पर्दा पड जाय और वे स्पष्ट दिखलाई न पडे । विद्यार्थी फिर कुछ रुका और सोचने लगा । अन्तको उसे यही कहते हए बन पडा-'बिना अपेक्षाके किसीको छोटा या बड़ा कैसे कहा जासकता है ? पहले जो मैंने इस लाइनको 'छोटी' तथा 'बडी' कहा था वह अपेक्षासे ही कहा था, अब आप अपेक्षाको बिल्कुल ही अलग करके पूछ रहे हैं तब मैं इसे छोटी या बड़ी कैसे कह सकता हूँ, यह मेरी कुछ भी समझमे नहीं आता। आप ही समझाकर बतलाइये।' ____ अध्यापक-तुम्हारा यह कहना बिल्कुल ठीक है कि 'बिना अपेक्षाके किसीको छोटा या बडा कैसे कहा जा सकता है ? अर्थात नहीं कहा जासकता । अपेक्षा ही छोटेपन या बड़ेपनका मापदण्ड है-मापनेका गज है ? जिस अपेक्षा-गज़से किसी वस्तुविशेषको मापा जाता है वह गज़ यदि उस वस्तुके एक अंशमे आजाता है-उसमें
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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