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________________ उपवास परन्तु ऐसा नहीं है। हमारे प्राचार्योने उपवासका लक्षण इस प्रकार वर्णन किया है - कमाय-विषयाहार-त्यागो यत्र विधीव्रते। उपवास स विज्ञेय शेषं लंघनक बिदुः॥ अर्थात-जिसमें कषाय, विषय और पाहार इन तीनोका त्याग किया जाता है उसको उपवास समझना चाहिये, शेष जिसमें कषाय और विषयका त्याग न होकर केबल पाहारका ही त्याम किया जाये उसको लघन (भूखा मरना) कहते हैं। श्री अमितगति प्राचार्य इस विषयमे ऐसा लिखते हैं त्यक्त-भोगोपभोगस्य, सर्वारम्भ-विमोचिन । चतुर्विधाऽशनत्याग उपवासो मतो जिनः ।। अर्थात्-जिसने इन्द्रियोके विषयभोग और उपभोगको त्याग दिया है और जो समस्त प्रकारके पारस्मसे रहित है उसीके जिनेन्द्रदेवने चार प्रकारके प्राहार-यागको उपवास कहा है । अत इन्द्रियोके विषयमोग और प्रारम्भके त्याग किये बिना चार प्रकारके माहारका त्यागना उपवास नही कहलाता।। स्वामी समन्तभद्राचार्यकी उपवासके विषयमे ऐसी आज्ञा है - पचाना पापानासल कियाऽऽरम्भ गध-पुष्माणाम् । स्नानाऽञ्जन-नस्यानामुपपासे परिहृतिं कुर्यात् ।।१।। धर्मामृत सतृष्ण श्रवणाभ्यां पिवतु पाययेद्वान्यान् । ज्ञान ध्यान-परो वा भवतूपवसन्न वन्द्रालु |२|| 'उपवासके दिन पांचो पापो हिसा,भूठ,चोरी,मैथुन और परिग्रहका, श गारादिक रूपमें शरीरकी सजावटका, प्रारम्भोका, चन्दन इत्र फुलेल प्रादि गध द्रव्योंके लेपन का, पुष्पोके सू घने तथा माला आदि धारण करनेका, स्नानका, अखिोमें अजन (सुरमा) लगानेका और नाकमें दवाई डालकर नस्य लेने तथा तमाखू आदि सूंघनेका, त्याग करना चाहिये।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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