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________________ स्व-पर-वेरी कौन ? ३५५ बिना अनेकातका प्राश्रय लिये लोकका व्यवहार ठीक बनता ही नही, और न परस्परका वर-विरोध ही मिट सकता है । इसीलिये अनेकातको परमागमका बीज और लोकका अद्वितीय गुरु कहा गया है-वह सबोके लिये सन्मार्ग-प्रदर्शक है। जैनी नीतिका भी वही मूलाधार है। जो लोग अनेकातका सचमुच पाश्रय लेते हैं वे कभी स्व-पर-वेरी नही होते उनसे पाप नही बनते, उन्हें आपदाएं नहीं सताती और वे लोकमें सदा ही उन्नत उदार तथा जयशील बने रहते हैं । १. नौति-विरोध-ध्वंसी लोकव्यवहारवर्तक सम्यक् । परमाननस्य बीज मुक्नेकार्णवस्यनेकान्तः ॥
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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