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________________ जेनी कौन हो सकता है? ३०१ जेनी अपनेको जैनी कहते हुए डरते थे और अपने धर्म तथा शास्त्रोंको छिपानेके लिए बाध्य होते थे। अब वह समय पा गया है कि लोगोकी प्रवृत्ति सत्यताकी खोज और निष्पक्षपातताकी पोर होती जाती है। इसलिये जैनियोंके लिये यह समय बड़ा ही अमूल्य है। ऐसे अवसर पर हमको अवश्य अपने धर्मरलका प्रकाश सर्व-साधारणमे फैलाना चाहिये । सर्व मनुष्योपर जैनधर्मके सिद्धान्त और उनका महत्व प्रकट करना चाहिये और उनको बतलाना चाहिये कि कैसे जैनधर्म ही सब जीवोका कल्याण कर सकता है और उनको वास्तविक सुखकी प्राप्ति करा सकता है । इस समय हमारे भाइयोकी सिर्फ थोडीसी हिम्मत और परोपकारबुद्धिकी ज़रूरत है। बाकी यह खूबी खुद्र जैनधर्ममे मौजूद है कि वह दूसरोको अपनी ओर आकर्षित कर लेवे । परन्तु दूसरोको इस धर्मका परिचय तथा जानकारी कराना मुख्य है और यह जैनियोंका कर्तव्य है।। अत प्यारे जैनियो । आप कुछ भी न घबराते हुए इस धर्मरत्नको हाथमे लेकर चौडे मैदानमे खडे हो जाइये और जौहरियोंसे पुकार कर कहिये कि वे पाकर इस रत्नकी परीक्षा करे। फिर आप देखेंगे कि कितने धर्मजोहरी इस धर्मरत्नको देखकर मोहित होते है और इस पर अपना जीवन अपरण करनेके लिये उद्यमी नज़र आते हैं । अभी हाल में कुछ लोगोके कानो तक इस धर्मका शुभ समाचार पहुंचा ही था कि वे तुरत मन-वचन-कायसे इसके अनुयायी और भक्त बन गये है। इसलिये मेरा बार बार यही कहना है कि कोई भी मनुष्य इस पवित्र धर्मसे वचित न रक्खा जावे, किसी न किसी प्रकारसे प्रत्येक मनुष्यके कानो तक इस धर्मकी आवाज (पुकार ) पहुंच जानी चाहिये और इस बातका दिलमें कभी खयाल भी न लाना चाहिये कि अमुक मनुष्य इस धर्मको धारण करनेके अयोग्य है अथवा इस धर्मका पात्र ही नहीं है । क्योकि यह धर्म प्राणीमात्र. का धर्म है। यदि कोई मनुष्य पूरी तौर पर इस धर्मका पालन नही
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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