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________________ जैनी कौन हो सकता है ? ३०३ पुराणमें लिखी है। और इसी पुराणमें,जहां पर श्रीमहावीरस्वामीके समवसरणका वर्णन है वहांपर, यह भी लिखा है कि समवसरणमे जब श्रीमहावीरस्वामीने मुनिधर्म और श्रावकधर्मका उपदेश दिया तो उसको सुनकर बहुतसे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य लोग मुनि हो गये और चारो ही वर्णके स्त्री-पुरुषोने श्रावकके बारह व्रत धारण किये' इतना ही क्यो ? उनकी पवित्र वाणीका प्रभाव यहाँ तक पड़ा कि कुछ जानवरोने भी अपनी शक्तिके अनुसार श्रावकके व्रत धारण किये । इससे भली भाति प्रकट है कि, प्रत्येक मनुष्य ही नहीं बल्कि प्रत्येक जीव अपनी योग्यताके अनुसार जैनधमको धारण कर सकता है। इसलिये जैनधर्म सबको बतलाना चाहिये। इन सब उल्लेखो परसे, यद्यपि, प्रत्येक मनुष्य खुशीसे यह नतीजा निकाल सकता है कि, जैनधर्म आजकलके जैनियोंकी खास मीरास नहीं है, उस पर मनुष्य क्या जीवमात्रको पूरा पूरा अधिकार प्राप्त है और प्रत्येक मनुष्य अपनी शाक अथवा सामथ्यके अनुसार उसको धारण और पालन कर सकता है, फिर भी यहाँपर कुछ थोड़ेसे प्रमाण और उपस्थित किये जाते है जिससे इस विषयक सदेह अथवा भ्रमका और भी अच्छी तरह निरसन हो सके: (१) 'पूजासार' के श्लोक न० १६ मे जिनेन्द्रदेवकी पूजा करने वालेके दो भेद वर्णन किये है-एक नित्य पूजन करनेवाला, जिसको 'पूजक' कहते है और दूसरा प्रतिष्ठादि विधान करनेवाला, जिसको पूजकाचार्य' कहते है । इसके पश्चात् दो श्लोकोमे आय (प्रथम) भेद, 'पूजक' का स्वरूप दिया है और उसमे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र, इन चारो ही वोंके मनुष्योको पूजा करनेका अधिकारी ठहराया है। यथा - - हरिवशपुराणके उल्लेखो के लिये देखो ५०दौलवरामजी-द्वारा अनुवादित भाषा हरिव शपुराण अथवा जिनसेनाचार्यकृत मूलमन्य।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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