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________________ युगवीर-नियमावली तो सर्व प्रकारसे इसके योग्य और दूसरे जीवोंको इस धर्ममें लगाने बाले ठहरे । सच पूछा जाय तो, किसी भी देश, जाति या वर्णके मनुष्यको इस धर्मके धारण करने की कोई मनाही ( निषेध ) नहीं है। प्रत्येक मनुष्य खुशीसे जैनधर्मको धारण कर सकता है । इसीसे सोमदेवसूरिने कहा है . मनोवाकायधर्माय मता मर्वेऽपि जन्तक ।' अर्थात-मन, वचन, तथा कापसे किये जाने वाले धर्मका अनुष्ठान करनेके लिये सभी जीव अधिकारी हैं। जैन-शास्त्रोंसे तथा इतिहास-प्रन्थोंके देखनेसे भी यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है और इसमे कोई सन्देह नहीं रहता कि प्राय सभी जातियोके मनुष्य हमेशासे इस पवित्र जैनधर्मको धारश करते पाए हैं और उन्होने बडो भक्ति तथा भावके साथ इसका पालन किया है। _देखिये, क्षत्रिय लोग पहले अधिकतर जैनधर्मका ही पालन करते थे। इस धर्मसे उनको विशेष अनुराग और प्रीति थी। वे इसी धर्मको जगतका और अपनी प्रात्माका कल्याण करनेवाला समझते थे। हजारों राजा ऐसे हो चुके है जो जेनी थे अथवा जिन्होने जैनधर्मकी दीक्षा धारण की थी। खासकर, हमारे जितने तीर्थकर हुए हैं वे सब ही क्षत्रिय थे। इस समय भी जैनियोमें बहुतसे जेनी ऐसे हैं जो क्षत्रियोकी सन्तानमेंसे है, परन्तु उन्होने क्षत्रियोका कर्म छोड कर वेश्यका कर्म अगीकार कर लिया है. इसलिये वैश्य कहलाते हैं। इसी प्रकार ब्राह्मण लोग भी पहले जैनधर्मको पालन करते थे और इस समय भी कही कही सैकड़ो ब्राह्मण जैनी पाये जाते हैं। जिस समय भगवान ऋषभदेवके पुत्र भरत चक्रवतीने क्षत्रियो आदिकी परीक्षा लेकर जिनको अधिक धर्मात्मा पाया उनका एक ब्राह्मण बर्ष स्थापित किया था उस समय तो ब्राह्मण लोग गृहस्थ जैनियोके पूज्य समझे जाते थे और बहुत काल तक बराबर पूज्य बने रहे।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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