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________________ २१० grate-freधावली / क्यों न जाय ?" कितने मार्मिक तथा हृदयस्पर्शी उद्गार हैं- दिलको हिला देनेवाले कलाम अथवा वचन हैं और इनसे किस दर्जे सचाई तथा ईमानदारीका प्रकाश होता है, इसे पाठक स्वम समझ सकते है। सचमुच ही वह जमाना भी कितना अच्छा और सच्चा था और उसकी बातोसे कितना सुख तथा शातिरस टपकता है । परन्तु आज नकशा बिल्कुल ही बदला हुआ है । प्राज उस कर्ज तथा दूसरे ठहरावोके लिये दस्तावेजात लिखाई जाती हैं, दस्तखत ( हस्ताक्षर ) होते है, प्रगृठे लगते हैं, रजिष्टरी कराई जाती है और रजिष्टरीपर रुपया दिया जाता है, फिर भी बादको ऐसी झूठी उज्रदारियां ( प्रापत्तियां ) होती है कि दस्तावेज़ ज़रूर लिखी, दस्तखत किये या अँगूठा लगाया और रजिष्टरीपर रुपया भी वसूल पाया, लेकिन दस्तावेज फर्जी थी, किसी अनुचित दबावके कारण लिखी गई थी, रुपया बादको वापिस दे दिया गया था या किसी योग्य कार्यमें खर्च नही हुआ, और इस लिये मुद्दई (वादी) उसके पानेका या दस्तावेज के आधारपर किसी दूसरे हकके दिलाए जानेका मुस्तहक (अधिकारी) नही है । मोह । कितना अधिक पतन और बेईमानीका कितना दौर दौरा है || उस वक्त अदालतोके दर्जाजे शायद ही कभी खटखटाए जाते थे, पंचायतोका बल बढा हुआ था, यदि कोई मामला होता था तो वह प्राय घरके घरमें या अपने ही गाँवमें आसानीसे निपट जाया करता था - जरा भी बढने नहीं पाता था । परन्तु श्राज बात-बात में लोग अदालतोमे दौडे जाते हैं, उन्हीकी एक शरण लेते हैं, बस्ता बगलमें care उन्हीकी परिक्रमा किया करते हैं, उनके पड़े पुजारियोवकील - बेरिष्टर-मुम्तार - ग्रहलकारों के श्रागे बुरी तरहसे गिडगिडाते हैं वह भी प्राय न्यायके लिये नहीं, बल्कि किसी तरहसे बात रह जाय या उनकी बेईमानीको मदद मिल जाय--और इन्हीं अदालती मन्दिरोमें वे अपने धर्मकर्मकी अच्छी खासी बलि दे 4
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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