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युगवीर - निबन्धावली
रहने लगें तो इससे उनका स्त्रीपना ही नष्ट-भ्रष्ट अथवा रद्द और अमान्य हो जायगा ? यदि ऐसा कुछ नही है तो फिर फिजूल ज्यादा खर्च करके अपनेको दीन, हीन तथा मुहताज बनाने और मुसीबतोके जाल मे फँसानेकी क्या जरूरत है ? इन विवाह-शादियोके फिजूल खर्चाने ही लडकियोको माता-पिताके लिये भारी बना दिया है और -वे अक्सर उनका मरना मनाते रहते है । यह कितने दुख और अफसोसकी बात है | !
इसी तरह की और भी मरने, जीने, मिलने, बिछुडने, उत्सव, त्यौहार, बनावट, सजावट, खेल, तमाशे, शौकीनी, विलासिता और मनोविनोद प्रादिसे सम्बन्ध रखनेवाली बहुतसी जरूरियात फिजूल है, जिनको हमने ख्वाहमख्वाह अपने पीछे लगा रक्खा है और यदि हम चाहे तो उनको खुशीसे छोड सकते या कम कर सकते हैं । इन सब फिजूलकी जरूरियातने ही हमारे दुखको बढा रक्खा है, हमारे जीवनको बहुत ही खर्चीला ( expensive ) या अधिक धन पर आधार रखनेवाला बनाकर हमको अच्छी तरहसे तबाह और बर्बाद कर रक्खा है, इन्हीकी बदौलत हमारी प्रादत और प्रकृति बिगड गई है और हम धर्म या ईश्वरके उपासक न रहकर खाली धनके उपासक बन गये है, और इन्हीके कृपाकटाक्षका यह फल है जो हमारा धर्म-कर्म सब उठ गया, हममें वे सब बुरे कर्म अथवा पापाचरण घुस गये जिनका ऊपर उल्लेख किया गया है, और हम अपने पूर्वजोके आदर्शसे बिल्कुल ही गिर गये हैं ।
आदर्शसे गिर जाना
हमारे पूर्वज पहले कितने सादा चालचलनके होते थे और कितना सादा जीवन व्यतीत करते थे, यह बात किसीसे भी गुप्त अथवा छिपी नही है । उनका खाना-पीना
पहनना - प्रोढना, शयन
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प्रासन और रहन सहनका सब सामान सादा तथा परिमित था, वे