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________________ हम दुखी क्यों हैं ? २८५ रंग सादे वस्त्र पहनना पसंद नही करता और उसके शौक तथा हठको पूरा करनेके लिये फिर वैसे ही या उससे भी अच्छे बढिया बहुमूल्य वस्त्रोकी ज़रूरत खडी होती है तो क्या यह फ़िज़ूलकी जरूरत पैदा करना नही है ? अवश्य है । और यदि उसे पैदा न करके या पूरा न करके उस बच्चेको सादा कपडे ही पहननेको दिये जायँ तो इससे उस बच्चेकी तन्दुरुस्ती या स्वास्थ्य वगैरहको कोई नुकसान नही पहुँच सकता । खाना-पीना जीवित रहनेके लिये ज़रूरी जरूर है परन्तु बढिया, शौकीनी, चटपटे मसालेदार, अधिक गरिष्ठ, श्रधिक भारी देर से पचनेवाला श्रौर खूब उत्तेजक खाना-पीना, परिमारणसे अधिक खाना और हर वक्त या बेवक्त खाना उसके लिये कोई जरूरी नहीं है । ऐसे खाने-पीने तथा आटेके स्थानमे मैदेका ही अधिक व्यवहार करनेकी वजहसे यदि पेट खराब हो जाय, पाचन शक्ति जाती रहे, स्वास्थ्य बिगड जाय और हर वक्त चूर्ण गोली या दवाईके सेवनकी अथवा हकीम डाक्टर या वैद्यके पास जानेकी ज़रूरत रहने लगे, तो क्या इस व्यर्थकी जरूरतकी कभी पीठ ठोकी जा सकती है ? कदापि नही । उसे जहाँ तक बन सके शीघ्रही भोजनमे सुधार और सयमसे काम लेकर दूर कर देना चाहिये । हमारे स्वास्थ्यकी खराबीका अधिकतर आधार इस खाने-पीनेकी गडबडी, असावधानी या जिह्वाकी लोलुपता शौकीनी और सयमकी कमी पर ही है, और इससे हमारी शक्तियोका बहुत ही दुरुपयोग हो रहा है और हम अपने बहुतसे कर्तव्योकी पूर्ति से वचित रहते हैं। पहनने-प्रोढनेका भी ऐसा ही हाल है । कपडा तन-बदनको ढकने और सर्दी-गर्मी से बचनेके लिये होता है और उसकी यह गरज बहुत सादा तरीक़ो पर अच्छी तरहसे पूरी की जा सकती है । कोई पचास साठ वर्ष पहले हमारो माताएँ और बहने अपने काते हुए सूतके कपड़े तय्यार कराती थी और वे गाढेके कपड़े घर भरके
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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