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________________ २८२ युगवीर-निबन्धावलो यातको घटाकर, परिग्रहको कम करके और रीतिरिवाजको बदलकर बहुत कुछ सुखी हो सकते है । यह सब हमारे ही हाथका खेल है और उसे करनेके लिये हम सब प्रकारसे समर्थ हैं-सिर्फ भूलका ज्ञान और उसके सुधारके लिये मनोबलकी जरूरत है। यहाँपर मैं इतना और भी बतला देना चाहता हू कि बाह्य 'पदार्थों के सम्बन्धसे यदि हमे सुख मिल सकता है, तो वह तभी मिल सकता है जब कि जगतके सम्पूर्ण पदार्थ हर वक्त हमारी इच्छाके अनुसार प्रवर्ता कर - उनके सम्पूर्ण परिवर्तन अथवा अलटन-पलटन और उनकी गति-स्थितिको लिये हुए समस्त क्रियाएँ हमारो मर्जी तथा रुचिके अनुकूल हुअा करे । परन्तु ऐसा हो नहीं सकता, क्योकि उन पदार्थोका परिणमन-उनमे किसी परिवर्तन अथवा क्रियापिक्रियादिका होना स्वय उनके अधीन है - उनके स्वभाव आदिके आश्रित है -हमारे अधीन नही । जो लोग उनको सब तरहसे अपने अधीन चाहते हैं और खाली इस प्रकारकी कामनाएँ किया करते है कि इस वक्त वर्षा हो जाय, क्योकि सख्त गर्मी पड़ रही है या हमारा खेत सूखा जा रहा है,इस समय वर्षा न होवे या बन्द हो जाय, क्योकि हम सफर ( यात्रा) मे हैं या सफरको जा रहे है, हमारे मकान टपके नही, उनमें वर्षाकी बौछार न आवे, जाडोमे ठंडी और गर्मियोमे गर्म हवा न घुसे, वे ज्योके त्यो बने रहे, टूटे-फूटे भी नहीं और न मैले-कुचैले ही हो, हमारे शरीरमे कोई रोग पैदा न हो, कोई बीमारी हमारे पास न आए, हम खूव हृष्ट-पुष्ट, तन्दुरुस्त, बलवान और जवान बने रहे, हमारे बाल भी सफेद न होने पाएँ, हमारे कपडे जैसे तैसे उजले और नए बने रहे वे फटे भी नही और न उनपर कही कोई दाग धब्बा या खुरे आदिका निशान ही होने पावे, हमारी किसी चीज़ को नुकसान न पहुंचे, किसीका रग रूप भी न बिगडे और न कोई घिसे याघिसावे, हमको किसी भी इष्ट वस्तुका वियोग न सहना पडे, हमारे
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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