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________________ हम दुखी क्यों हैं ? २७५ सकती है ? कदापि नहीं । एक दूसरे आदमीके पास खूब धन-दौलत, जमीन, जायदाद, जेवर कपडे, महल मकान हाट दुकान, बागबागीचे, नौकर-चाकर, घोडा, गाडी रथ, बहल,सुशीला स्त्री, आज्ञाकारी बच्चे और प्रेमी भाई-बहन वगैरह सब कुछ विभूति मौजूद है । आप कहेगे कि वह बडा सुखी है । परन्तु उसके शरीरमे एक असाध्य रोग होगया है, जो बहत कुछ उपचार करनेपर भी दूर नहीं हो सका। उसकी वजहसे वह बहुत ही हैरान और परेशान है, उसको किसी भी चीजमे पानद मालूम नहीं होता और न किसीका बोल सुहाता है, वह अलग एक चारपाई पर पड़ा रहता है मूगकी दालका पानी भी उसको हजम नहीं होता-नही पचता- दूसरोको नानाप्रकारके भोजन और तरह तरहकी चीजे खाते पीते देखकर वह अरता है, अपने भाग्यको कोसता है, और जब उसे ससारसे अपने जल्दी उठ जाने और उस सपूर्ण विभूतिके वियोगका खयाल प्रा जाता है, तो उसकी वेदना और तडपका ठिकाना नही रहता, वह शोकके सागरमे डूब जाता है, और तब उसकी वह सारी विभूति मिलकर भी उसे उस दु खसे निकालनेमे जरा भी समर्थ नहीं होती। अब एक तीसरे ऐसे शख्शको लीजिये जिसके पास उपयुक्त सपूर्ण विभूतिके साथ साथ शारीरिक स्वास्थ्यकी- तन्दुरुस्तीकीभी खास सम्पत्ति मौजूद है और जो खूब हट्टा-कट्टा हृष्ट-पुष्ट तथा बलवान् और ताकतवर बना हुआ है । उसे तो आप जरूर कहेंगे कि वह पूरा सुखिया है। परन्तु उसके पीछे फौजदारीका एक ज़बरदस्त मुकद्दमा लगा हया है, जिसकी वजहसे उसकी जान अजाबमे अथवा सकटापन्न है। वह रात-दिन उसीके फिक्रमे डूबा रहता है। चलतेफिरते खाते-पीते और सोते-जागते उसीकी एक चिता और उसीकी एक धुन उसके सिरपर सवार है, उसकी मौजूदगीमे अपना सब ठाटबाट और साज-सामान उसे फीका फीका नजर आता है । रसोईमे छत्तीस प्रकारके भोजन तय्यार हैं और स्त्री बडी विनय-भक्तिके साथ
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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