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________________ गोत्रस्थिति और सगोत्र-विवाह २३५ भी सही, इतना तो स्पष्ट है कि इन सब लोगोके पुराने गोत्र कायम नही रहे और ८४ नये गोत्रोकी सृष्टि हुई। एक गोत्रके लोग प्रायः अनेक प्रामोमें रहते हैं और एक ग्राममे अक्सर अनेक गोत्रोके लोग रहा करते है । जब गोत्रोका नामकरण ग्रामोके नामो पर हुआ एक ग्रामके रहनेवाले जैनियोका एक गोत्र कायम किया गया और अपने अपने उस गोत्रको छोडकर खडेलवाल लोग दूसरे गोत्रमे विवाह सम्बन्ध करते हैं तब उनके पिछले गोत्रोकी दृष्टिसे यह कहा जा सकता है कि वे सगोत्र-विवाह भी करते है क्योकि यह प्राय असभव है कि उन सब नगर-ग्रामोमे पहलेसे एक-दूसरेसे भिन्न अलग अलग गोत्रके ही लोग निवास करते हो। राजमलजी बडजात्याने खडेलबाल जैनोका जो इतिहाम लिखा है उससे तो यह स्पष्ट मालूम होता है कि कितने ही वशोके लोग अनेक ग्रामोमे रहते थे जैसे चौहान वशके लोग खडेलानगर, पापडी भैसा, दरड्यो, गदयो, पहाडी, पाडणी, छावडा, पागुल्यो, भूलागी, पीतल्यो, बनमाल, अरडक, चिरडकी, सॉभर और चोवण्यामे रहते थे । इन नगर ग्रामोके निवासियोके लिये क्रमश सहा, पापडीवाल भैसा ( बडजात्या ), दरड्यो, गदैया, पहाड्या, छावडा, पागुल्या, भूलण्या पीतल्या, बनमाली) अडक, चिरडक्या, साभर्या और चौवाण्या गोत्रोकी सृष्टि की गई । इन गोत्रोके खडेलवाल क्या आपसमे विवाह-सम्बध नहीं करते ? यदि करते हैं तो चौहानवशके मूलगोत्रकी दृष्टिसे कहना होगा कि वे एक १ यह दूसरी बात है कि कुछ रिश्तेदारोके गोत्र भी टाले जाते हैं । परन्तु उमसे किसी वाम नाम गोत्रोका नियमित रूपमे टाला जाना लाजिमी नही पाता । हो सकता है कि एक विवाहके अवसर पर किमी रिश्तेदारका जो गोत्र टाला गया वह कालान्तरमे न टाला जाय अथवा उसी गोत्रमे कोई दूसरा विवाह भी कर लिया जाय क्योकि रिश्तेदारीकी वह स्थिति उत्तरोत्तर मतन्मेि बदलती रहती है।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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