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________________ जाति भेद पर श्रमितगति प्राचार्य न विप्राप्रियोरहित सर्वदा शुद्धशीलता । कालेानादिना गोत्रे स्खलन क्व न जायते ॥ २८ ॥ 'यदि यह कहा जाय कि पवित्राचारधारी ब्राह्मणके द्वारा शुद्धशीला ब्राह्मणी के गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न होता है उसे ब्राह्मण कहा गया है - तुम ब्राह्मणाचारके धरनेवालेको ही ब्राह्मण क्यो कहते हो ? - तो यह ठीक नही है । क्योकि यह मान लेनेके लिये कोई कारण नही है कि उन ब्राह्मरण और ब्राह्मणी दोनोमे सदा कालसे शुद्धशीलताका अस्तित्व ( अक्षुण्णरूप से ) चला आता है। अनादिकालसे चली आई हुई गोत्रसन्ततिमे कहाँ स्खलन नही होता ? - कहाँ दोष नही लगता ? - लगता ही है । भावार्थ- इन दोनो इलोकोमे प्राचार्यमहोदयने जन्मसे जाति माननेवालोकी बातको निसार प्रतिपादन किया है - जन्मसे जातीयता एकातपक्षपाती जिस रक्तशुद्धिके द्वारा जाति कुल प्रथवा गोत्रशुद्धिकी डुगडुगी पीटा करते हैं उसीकी नि सारताको घोषित किया है और यह बतलाया है कि वह अनादि प्रवाहमेबन ही नही सकती-बिना किसी मिलावटके प्रक्षुराण रह ही नही सकती । इन पद्योमें कामदेवकी दुर्निवारता और उससे उत्पन्न होनेवाली विकारताका वह सब श्राशय सनिहित जान पडता है जिसे प०प्राशाघरजीने, कुलजाति-विषयक प्रकृतिको मिथ्या, श्रात्मपतनका हेतु और नीच गोत्रके बन्धका कारण ठहराते हुए, अपने अनगारधर्मामृत ग्रन्थ और उसकी स्वोपज्ञटीकामे प्रकट किया है और जिसका उल्लेख लेखक-द्वारा 'विवाहक्षेत्र प्रकाश ' ' के 'असवर्ण और अन्तर्जातीय wwww. २२७ ~~www ˇˇ5✓ ^^ ^^ day १ प० आशाधरजीके उस कथनका एक वाक्य इस प्रकार है' अनादाविह ससारे दुवरेि मकरध्वजे । कुले च कामिनीमूले का जाति परिकल्पना || २. यह १७५ पृष्ठकी पुस्तक ला० जौहरीमलजी जैन सराफ, दरीबा कलf देहली ने प्रकाशित की है ।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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