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________________ सुधारका मूलमंत्र प्रगट कीजिये । सची पालोचनामें कभी सकोच न करनी चाहिए । विना समालोचनाके दोषोका' पृथक्करण नहीं होता। साथ ही, इस बातका भी खयाल रखिये कि इन सब कार्योंके सम्पादन करने और कराने में अथवा यह सब साहित्य फैलानेमें आपको अनेक प्रकारकी आपत्तियाँ आवेगी, रुकावटें पैदा होंगी, बाधाएँ उपस्थित होगी, और आश्चर्य नही कि उनके कारण कुछ हानि या कष्ट भी उठाना पडे, परन्तु उन सबका मुकाबला बडी शान्ति और धैर्यके साथ होना चाहिए, चित्तमे कमी क्षोभ न लाना चाहिए---क्षोममें योग्य-अयोग्यका विचार नष्ट हो जाता है और न कभी इस बातकी पर्वाह ही करनी चाहिए कि हमारे कार्योंका विरोध होता है, विरोध होना अच्छाहै,वह शीघ्र सफलताका मूल है । कैसा ही अच्छेसे अच्छा काम क्यो न हो, यदि वह पूर्व-सस्कारोके प्रतिकूल होता है तो उसका विरोध जरूर हुआ करता है । अमेरिका आदि देशोमें जब गुलामोको गुलामीसे छुडानेका आन्दोलन उठा तब खुद गुलामोने विरोध किया था । पागल मनुष्य अपना हित करनेवाले डाक्टर पर भी हमला किया करता है। इसलिए महत्पुरुषोंको इन सब बातोंका कुछ भी खयाल न होना चाहिए । अन्यथा वे लक्ष्य-भ्रष्ट हो जायेंगे और सफल-मनोरथ न हो सकेंगे। उन्हे अपना कार्य और आन्दोलन बराबर जारी रखना चाहिए । आन्दोलनके सफल होने पर विरोधी शान्त हो जायेंगे, उन्हे स्वय अपनी भूल मालूम पडेगी और आगे चलकर वे तुम्हारे कार्योके अनुमोदक और सहायक ही नहीं बल्कि अच्छे प्रचारक और तुम्हारे पूर्ण अनुयायी बन जायेंगे। जैन ग्रन्थोके छपानेका समाजमें कितना विरोध रहा । परन्तु अब वही लोग, जो उस विरोधमे शामिल थे और जिन्होने छपे हुए शास्त्रोको न पढनेकी प्रतिज्ञाप्रो पर अपने हस्ताक्षर भी कर दिये थे, खुशीसे छपे हुए ग्रन्थोको पढते-पढाते और उनका प्रचार करते हुए देखे जाते हैं । जिधर देखो, उधर छपे हुए ग्रन्थोंकी महिमा और
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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