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________________ युगवीर-निबन्धावली अंगरेज, पारसी, ईसाई और यहूदी आदि कोई भी क्यो न होअपने जानमालको जरा भी खतरे (जोखो) मे न समझे। हमें गुडों बदमाशो तथा उपद्रवी लोगोसे नफरत करके उन्हे बिल्कुल ही स्वतंत्र न छोड देना चाहिए, बल्कि उनसे मिलकर उन्हे सेवा-सुश्रषा और सद्व्यवहारादिकके द्वारा अपने बनाकर काबूमे रखना चाहिए । और अपने असरसे उनके दृप्फर्मो तथा बुरी आदतोको छुडा कर शाति-स्थापनके कार्यको और भा ज्यादा दृढ बनाना चाहिए, प्रत्येक नगर और ग्राममे ऐसा सुप्रवध करना चाहिए जिससे कही कोई चोरी, डकैती अथवा लूटमार न हो सके, कोई बलवान किसी निर्बलको न सता सके, आपसके झगडे-टटे सब पचायतो द्वारा तै (फैसल) हुना करे, सबका जान-माल सुरक्षित रहे और इस तरह पर लोगोको स्वराज्यके पानदका कुछ अनुभव होने लगे और वे यह समझने लगें कि, सरकारकी सहायताके विना भी हम अपनी रक्षा आदिका प्रबध स्वय कर सकते है और उससे अच्छा कर सकते है। लोकमतके इतना शुद्ध और कर्तव्यनिष्ठ होनेपर स्वतत्रता-देवी अवश्य ही भारतके गलेमे वरमाला डालेगी,इसमे जरा भी सदेह नही है। अत हम सबको मिलकर सच्चे हृदयसे इसके लिये प्रयत्न करना चाहिए। इस समय आपसके झगडे टटो, मतभेदो और धार्मिक-विसवादोका अवसर नहीं है। उन्हे भुलाकर प्रत्येक भारतवासीको देशके मामलेमे एक हो जाना चाहिए और देशके उद्धार-विषयक कामोमे यथाशक्ति भाग लेना चाहिए। जो लोग अपनी किसी कमजोरीकी वजहसे ऐसे कामोमे कुछ हिस्सा नहीं ले सकते और न अपनी कोई खास सेवा देशको अर्पण कर सकते है, उन्हे कमसे कम इस ओर अपनी सहानुभूति ही रखनी चाहिए और बिगाडका तो ऐसा कोई भी काम उनकी तरफसे न होना चाहिए जिससे देशके चलते हुए काममे रोडा अटक जाय। यदि उनका कोई इष्टमित्रादिक अथवा देशका प्यारा नेता देशके लिये, बिना कोई अपराध किये, जेल जाता
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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