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________________ २१० युगवीर-निबन्धावली तभी हम स्वराज्य-सिद्धि के द्वारा होनेवाले अगणित लाभोसे अपनेको भूषित कर सकेगे। बिना कष्ट-सहनके कभी कोई सिद्धि नहीं होती। सरकारको पहले असहयोगकी साधनामे विश्वास नहीं था। वह . उसकी चर्चाको महज़ एक प्रकारकी बकवाद और बच्चोकासा खेल समझती थी। परतु अबतक इस दिशामे जो कुछ काम हुआ है, उससे जान पड़ता है कि सरकारका प्रासन डोल गया है और वह उसे थामनेके लिये अब बिल्कुल ही प्रापेसे बाहर हो गई है। उसने इस बातको भुला दिया है कि प्रजा पर ही राज्यका सारा दारोमदार (आधार ) है । प्रजाको असतुष्ट रखकर उसपर शासन नहीं किया जा सकता और न डरा-धमकाकर किसीको सत्यकी सेवासे बाज रक्खा जा सकता है । उसकी हालत बहुत ही घबराई हुई पाई जाती है और ऐसा मालूम होता है कि वह इस समय 'मरता क्या न करता' की नीतिका अनुसरण कर रही है। यही वजह है कि उसने अपनी उस घबराहटकी हालतमे मनमाने कानून बनाकर कानूनोका मनमाना अर्थ लगाकर और मनमानी आज्ञाएँ जारी करके, देशके प्राय सभी सेवको, शुभचिन्तको, सहायको और बडे बडे पूज्य नेताप्रो तकको बड़ी तेजीके साथ गिरफ्तार करना और मनमानी सजा देकर जेल भेज देना प्रारभ कर दिया है। इस कार्रवाईसे सरकारकी बडी ही कमजोरी पाई जाती है और इससे उसने अपनी रही सही श्रद्धाको भी प्रजाके हृदयोसे चलायमान कर दिया है । शायद सरकारने यह समझा था और अब भी समझ रक्खा है कि इस प्रकारकी पकड-धकडके द्वारा वह प्रजाको भयकम्पित बनाकर और उसपर अपना अनुचित रौब जमाकर उसे अपने पथसे भ्रष्ट कर देगी, और इस तरहपर देशमें स्वराज्य तथा स्वाधीनताकी जो आग सुलग १ लार्ड रीडिंगने स्वयं अपनी घबराहटको स्वीकार किया है । देखो, 'बन्देमातरम्' ता० १६-१२-१६२१
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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