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________________ उपासनाका ढंग अाजकल हमारी उपासना बहुत कुछ विकृत तथा सदोष हो रही है और इसलिये समाजमें उपासनाके जितने अग और ढग प्रचलित है उनके गुण दोषो पर विचार करनेकी बडी जरूरत है। उन पर स्वतत्रताके साथ अनेक लेख लिखे जा सकते हैं। एक बार 'नौकरोसे पूजन कराना' नामका लेख अपने द्वारा लिखा भी गया था। इस समय उपासनाके ढग-सम्बन्धमे सकेतरूपसे इतना ही कह देना काफी होगा कि, उपासनाका वही सब ढग उपादेय है जिससे उपासनाके सिद्धान्तमे-उसके मूल उद्देश्योमे-कुछ बाधा न पडती हो। उसका कोई एक निर्दिष्टरूप नहीं हो सकता । भगवान जिनेंद्रदेवने भी, अपनी दिव्यनिके द्वारा उसका कोई एक रूप निर्दिष्ट नहीं किया । बल्कि, उन्होने यह भी नहीं कहा कि तुम मेरी उपासना करना, मेरी मूर्ति बनाना और मेरे लिये मदिर खड़ा करना । यह सब मदिर-मूतिका निर्माण और उपासनाके लिये तरह तरहके विधि-विधानोका अनुष्ठान स्वय भक्तजनो-श्रावकोके द्वारा अपनी अपनी भक्ति तथा शक्ति आदिके अनुसार कल्पित किया गया है, और जो समय पाकर रूढ होता गया, जैसा कि श्रीमत्पात्रकेसरी स्वामीके निम्न वाक्यसे ध्वनित है विमोक्षसुख-चैत्य-दान-परिपूजनाद्यामिका क्रिया बहुविधा सुमन्मरण-पीडना-हेतवः ।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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