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________________ Pay युगवीर बाक नहीं है। अस्तु इस सम्पूर्ण विवेचनसे प्राचीन मोर प्रर्वाचीनकरके विवाह विमानोंकी विभिन्नता, उनका देश-कालानुसार परि वर्तन और लौकिक धर्मोका रहस्य इन सब बातोका बहुत कुछ अनुभव प्राप्त हो सकता है, और साथ ही यह भले प्रकार सम्मे सकता है कि वर्तमान रीति-रिवाज कोई सर्वज्ञभाषित ऐसे प्रटल सिद्धान्त नही हैं कि जिनका परिवर्तन न हो सके अथवा जिनमें कुछ फेरफार करनेसे धर्मके डूब जानेका कोई भय हो । हम अपने सिद्धालोका विरोध न करते हुए, देश-काल मौर जातिकी मावश्यकताओके अनुसार उन्हे हर वक्त बदल सकते है । वे सब हमारे ही काम किये हुये नियम हैं और इसलिए हमे उनके बदलने का स्वत. अधिकार प्राप्त है। इन्ही सब बातोको लेकर एक शास्त्रीय उदाहरणके रूपमे यह निबन्ध लिखा गया है । आशा है कि हमारे जैनी भाई इससे जरूर कुछ शिक्षा ग्रहण करेगे और विवाहतत्त्वको समझ कर, जिसके समझनेके लिये 'विवाह समुद्द ेश्य' नामक निबन्ध भी साथमे पढ़ना विशेष उपयोगी होगा, अपने वर्तमान रीति-रिवाज़ोमे यथोचित फेरफार करनेके लिये समर्थ होगे । और इस तरह कालचक्रके आघात से बचकर अपनी सत्ताको चिरकाल तक यथेष्ट रीतिसे ब्राये रक्खेये ।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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