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________________ नौकरोंसे पूजन कराना १५९ स्माकी पूजा, भक्ति और उपासना करना चाहते हैं तो उन्हे सब पाडम्बरोको छोड़कर पूजनकी अपनी वही पुरानी, प्राकृतिक और सीधीसादी पद्धति जारी करनी चाहिए, जिसका ऊपर उल्लेख किया गया है। ऐसा करनेपर पुजारियोको नौकर रखनेकी भी फिर कुछ जरूरत नहीं रहेगी और आत्मोन्नति-सम्बन्धी वह सब लाभ अपनेको प्राप्त होने लगेगा, जिसको लक्ष्य करके ही मूर्तिपूजाका विधान किया गया है और जिसका परिचय पाठकोको, जिनपूजाधिकारमोमासा'के पूजनसिद्धान्त' प्रकरणको पढनेसे भले प्रकार मिल सकता है । विपरीत इसके यदि जेनी लोग अपनी वर्तमान पूजनपद्धतिको न बदलनेके कारण नौकरोसे पूजन कराना जारी रवखेगे तो इसमे सदेह नही कि वह समय भी शीघ्र निकट आ जायगा जब उन्हे दर्शन, सामायिक, स्वाध्याय, तप, जप, शील, सयम, व्रत, नियम और उपवासादिक सभी धार्मिक कामोके लिये नौकर रखने या उन्हे सर्वथा छोड देनेकी जरूरत पड़ने लगेगी। और तब उनका धर्मसे बिल्कुल ही पतन हो जायगा। इसलिए जेनियोको शीघ्र ही सावधान होकर अपनी वर्तमान पूजनपद्धतिमे आवश्यक सुधार करके उसे सिद्धान्तसम्मत बना लेना चाहिए । और नौकरोके-द्वारा पूजनकी प्रथाको एकदम उठा देना चाहिए । आशा है कि, समाजके नेता और विद्वान् लोग इस विषयकी ओर खास तौरसे ध्यान देगे।
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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