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________________ युगवीर-निबन्धावली उसके आगे पापका भय कोई चीज़ नही है। पापके भयसे बहुत ही कम अपराधोकी रोक होती है । ऐसे बहुत ही कम लोग निकलेगे जो पापके भयसे अपराध न करते हो । जो हैं उन्हे सच्चे धर्मात्मा समझना चाहिए । बाकी अधिकाश लोग ऐसे ही मिलेंगे जो लोकभयसे, राज्य-भयसे या परशक्तिके भयसे पापाचरण करते हुए डरते हैं। अन्यथा, उन्हें पापसे कोई घृणा नही है वे सब जब मौका मिलता है तब ही उसे कर बैठते हैं। ऐसी हालतमें समूह बनाकर रहने की बहुत ही जरूरत है। समूहमे बहुत बडी शक्ति होती है। छोटे छोटे तिनको और कच्चे सूतके धागोंका कुछ भी बल नहीं है, उन्हे हर कोई तोड़-मरोड सकता है। परन्तु जब वे मिलकर एक मोटे रस्सेका रूप धारण कर लेते हैं तब बडे बडे मस्त हाथी भी उनसे बाधे जा सकते है। चीटिया आकार में कितनी छोटी छोटी होती हैं, परन्तु वे अपनी समूहशक्तिसे एक सापको मार लेती है। जिनकी ममूहशक्ति बढी हुई होती है उन पर एकाएक कोई आक्रमण नहीं कर सकता हर एकको उन पर अत्याचार करने या उनके स्वार्थमे बाधा डालनेका साहस नहीं होता, उनके स्वत्वों और अधिकारोकी बहुत कुछ रक्षा होती है। विपरीत इसके. जिनमे समूहशक्ति नहीं होती वे निर्बल कहलाते हैं और निबलो पर प्राय राजा और प्रजा सभीके अत्याचार हुआ करतेहैं। छोटी छोटी मछलियाँ सख्यामे अधिक होने पर भी अपनेमे समूहशक्ति नहीं रखती, इसलिये बडी बडी मछलियाँ या मच्छ उन्हे खा जाते हैं । मधुमक्खियाँ ( शहदकी मक्खियाँ ) अपनेमे कुछ समूहशक्ति रखती है, इससे हर एकको उनके छत्तेके पास तक नानेका साहस नहीं होता । साधारण मक्खियोमे वह शक्ति नहीं है, इसलिये उन्हे हर कोई मार गिराता है। इससे केवल व्यक्तियोकी सख्याके अधिक होनेका नाम 'समूह' या 'समूहशक्ति' नहीं है, बल्कि उनका मिलकर एक प्रारण' और 'एक उद्देश्य' हो जाना ही समूहशक्ति
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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