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________________ विवाह समुद्देश्य १२३ टक (बे-रोक-टोक ) काम सेवनकी परवानगी दी जाती है-उसे उनके लिये जायज और विधेय ठहराया जाता है। इसी खुशीमे अनेक प्रकारके बाजे बजते हैं, मांगलिक गीत गाये जाते हैं, तरह तरहके उपहार और इनाम बांटे जाते है, बराती गरए नये नये वस्त्र और रमविरगी पोशाके पहनते हैं और वरके माता-पिता तथा अन्य कुटुम्बी जनोके प्रानन्दका कुछ पार नही रहता । युवती तथा कन्यापक्षके बन्ध-प्रबन्ध और प्रमोद-प्रमोदकी भी प्राय यही सब हालत होती है। नगर भरमे जिधर देखो उधर मूर्तिमान श्रानन्द ही आनन्द दिखाई देने लगता है | कहा जाता है कि यह सब मागलिक कार्य है, इसे 'विवाहमगल' कहते है और इस प्रकारके मगल प्राय हुआ करते है और हमेशा से होते आए है। इन सब बातो पर गहरी दृष्टि डालते हुए एकाग्रताके साथ विचार करनेपर मालूम होता है और कहना पडता है कि, विवाहकी समस्या भी बडी ही विचित्र है । जो लोग इस समस्याको हल किये विना, विवाहका ठीक रहस्य समझे बिना और विना यह मालूम किये कि विवाहका उद्देश्य -- शादीकी असली गरज- क्या है, विवाहबन्धनमे पडते है - शादी कराते है - वे नि सन्देह बहुत बड़ी गलती करते है और विवाह के वास्तविक लाभोसे वचित ही रहते है । इसीलिए आज इस समस्याको हल करने, विवाहका रहस्य बतलाने और विवाह के समीचीन उद्देश्यको समझानेका प्रयत्न किया जाता है । - विवाह कर्म की सृष्टि जरूरत और उपयोगिता ससारमे अनादिकाल से यह जीवात्मा नाना प्रकारके अच्छेसे अच्छे और रमणीय विषयभोगोको भोगता हुआ चला आया है । मैथुनकी सृष्टि इस जगतमे अनादिसे ही चली प्राती है। परन्तु
SR No.010664
Book TitleYugveer Nibandhavali Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1963
Total Pages485
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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