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प्रस्तावना.
आ संसाररूप गाढ अरण्यमां परिभ्रमण करता आत्माओंए पोताना स्वभाविक स्थान संप्राप्त करवानी खातर पण वीतराग परमात्माए अर्थरूप प्रकाशित अने सर्वज्ञकल्प गणधर महाराजा मूत्रद्वारा निरूपित सन्मार्गनो आश्रय लेवानी अनिवार्य आवश्यकता छे, कारण के तेज सन्मार्गना अवलंवनथी अनेक भव्यात्माओए आ आधि व्याधि अने उपाधिथी परिपूर्ण संसार रूप अरण्यनुं शांतिपूर्वक उल्लंघन करी पोताना स्वाभाविक स्थानने संपात करेल छे. वर्तमान समये करे छे. अने आगामि समये करशे. ए बात निर्विवाद सिद्ध है.
ते सन्मार्गने गुज्ञात करवा मांटे परोपकार परायण पुरातन महर्षिओए तेज सूत्रोने अनुसरी अनेक ग्रंथरत्नोनी रचना करी तेना स्वरूपनी साथे तेने संमाप्त करवानां साधन आदि विषयाने पष्ट रीते सुवोधित करेल छे. ते महात्माओनी परंपरामां प्रसिजिने पामेलाज महात्मा आ प्रस्तुत त्रण ग्रंथरत्नोना प्रणेता छे. जेमनुं शुभ नाम महामहोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी हतुं.
यद्यपि आ ग्रंथग्नांना प्रणेताना अनुकरणीय जीवन चरित्रने अत्रे आलेखवानी जरुर छे, परंतु दुर्भाग्यना प्रभावे तेओश्रीना जीवनचरित्रनी संपूर्ण बातमी मेळवावा अमे भाग्यशाली या नथी अने ते संबंधी भिन्न भिन्न स्थळेथी संप्राप्त थयेली हकीकतोने संकलित करी भावनगर जैनधर्म प्रसारक सभाद्वारा प्रसिद्ध थयेल यशोविजयजी ग्रंथमाला नामना ग्रन्थरत्ननी प्रस्तावनाद्वारा ते सभाना कार्य वाहकोए प्रकाशित करी छे तेथी अत्रे तेनुंज पिष्टपेषण करवानी अमने जरुर जणाती नथी, परंतु पंडित शिरोमणी ओना शिरोने पण इपत् कं पावनारी केडलीक चावतोनो उल्लेखतो जरूर करीं
जेभीए मात्र पोतानी सात वर्ष जेटली नानी वयमां पोतानी मातुश्री साथे गुरु महाराज पासे एक वखत श्रवण गोवर करेल भक्तामर स्तोत्र " ते स्तोत्रना श्रवण कर्या वाढज अन्न पाणी अंगीकार करकुं" एवा नियमवती पोतानी मातुश्रीने श्रवण करावीने पोतानी अप्रतिम प्रतिभा अने असाधारण स्मरणशक्तिनो सारो चितार आप्यो हतो, तेथीज शासन रसिक महात्मा श्रीमान् नयविजयजी महाराजाए श्री संघनी पासे याचना करावी चारित्र अर्पि अध्ययनने अर्थे जोडती दरेक दरेक सामग्रीभो मेळवी आपना पाछी पानी करी न हती एव प्रघोष छे.
यद्यपि आ शासन रसिक महात्मा शासननी उन्नति माटे जेटलुं करे तेलुं ओलं छे. तेओए जे कइ कई छे ते पोतानुं कर्त्तव्यज छे एथी कंइ अधिकता नथी. परंतु काशी निवासी जैनांना प्रतिस्पर्धि पंडितोए पण ते महात्मानी अप्रतिम प्रतिभा अपूर्व ग्रन्थ ग्रथनशक्ति अने प्रतिवादीओने पराजित करवानी स्फुर्ति देखी आश्चर्य थइ " न्यायविशारद " अने “न्यायाचा" एवा योग्य विरुदोने अपिं आ महात्माने अलंकृत कर्या हता, अर्थात्