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(१९) महामहोपाध्याय श्री पशोविजयणी कृत. करेइ, करेइना नहि चेहई वंदइ, बंदरता इहमागच्छइ इह चेइयाई बंदइ, जंघाचारणसणे गोयमा तिरिय एवइए गतिविसए पन्नते। जंघाचारणस्सगंभंते! उई केवइएगइविसए पनचा गोयमा से ण इतो एगेणं उप्पाएणं पंडगवणेसमोसरण करेइ,करेइत्ता तर्हि चेहयाई वंदइ, बंदइतातो पडिणियतमाणे विविएणं उप्पारणं नंदणवणे समोसरण करेइ,करेइत्ता वहि चेइयाई पदइ, बदइत्ता इहमागच्छइ, इहमागच्छइचा इह चेइयाई वंदइ, जंघाचारणस्स गोयमा! उई एवइए गविक्सिए पनचे । से णं तस्स ठाणस्स अणालोइअपडिकवे कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा। सेणं तस्स ठाणस्स आलोइअपडिकते कालं करेइ अत्यि तस्स आराहणा। सेवं भंते सेव भते जाव विहरह" इति भगवती सूत्रे शतक वीशमे उद्देशे नवमे ए पाठ छे.
हवे कुमति नवनवा अभिप्राय लावी ए आलावानो अर्थ मरडे छे. ते प्रगट फरी दूपवे छे. अहिओ इंढक कहे छे जे-चैत्य शब्दे अमे जिनमतिमा नयी मानता भने एम करता तमे चैत्य शन्दे जिनविमा कहो छो तो कहो, पण ते वांदतां लाभ होव तो सूत्रमा "तस्स गणस्स अणालोइम" इत्यादिक पाठे केम कडा जे ते स्थानकने अणालोए, अण पडिकमे काल करे वो विराधक थाय ? इति तेनो उचर कहे के जे
आलोअणY ठाण कमु जे । तेह प्रमाद गति केरो॥ तीर गति जे जात्र विचाले । रहे ते खेद घणेरोरे जि० तु०।१९।। अर्थ-वे ठाणर्नु आलोअण कयु के वे स्थानक जे चैत्यवंदनामां प्रमाद स्थानक तेहत जे आलोववं, तेज देखाडे छे. ते प्रमाद गति केरो के० प्रमादे गति करी वेनुं आलोवबुं छे जे कारण माटे लब्धि उपजीवन ते प्रमाद गतिछे. कोइ पूछे जे-ते गणनुं आलोअण कधु एहवी अनवय क्याथो का ? तेने कहोए छैए जे-"तसरा गणस्स - णालोइअ." इत्यादिक सूत्र पाठ थकी एवो अन्वय कर्या इति. तथा वली प्रमाद स्थान बीजं देखाडे छे. वीर गति के तीरना वेगनी पैरे उतावली गतिए जे चाल्या जाय, ते जाता थका जाब विचाले के वचमां तीर्थयात्राप्रमुख शाश्वतां देहेराममुख रहे के० रही जाय छे. ते खेद घणेरो के० घणो खेद चित्तमा उपने छे. एटले तीरना वेगनी परे गया ते आलोषण सानक कहीए. इति भाव ।। इति एकोनविंशतितम गाथार्य ॥ १९ ॥ __ हवे आलावानो अर्थ-'कइविहाणे के केटला मकारना हे भगवन्, चारण पनि कया छ? प्रभुनी कहे छे हे गौवमा चे प्रकारना चारणमुनि छे. "तं जहाँ इत्यादिक ते कहे छे. गक विद्याधारण बीजा जंघाचारण. 'से केणष्टेणं' के शा कारणथी वियाचारण ? प्रभुनी फहे छे. हे गौतम छट छट्ट ने 'अणिश्विनेने में अविश्रामणे एटले निाना तप करतां 'विजार के विधाएं करा पूर्वगत त विशेषे कगने उनरगुनलाग्यममाणस के पिंड विशुद्धयादिकने विषे तप, वेडने खमना-सहेता पटले तप करता इतिभाव विधाचारणब्धि उपजे छे. 'से तेणटेणे' के ते कारण विद्याधारणकहीए. ह खामिन् , विषाचारणनी 'कई