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________________ (८०) अर्थ-१ क्षुद्र मति न होय एटले गंभीर होय २ रूपनो निधान होय एटले पंचेंद्रिय स्पष्ट होय ३ सोम्म एटले सौम्य होय ते स्वभावें अपापकर्मी होय ४ जनमियज के लोकने वल्लभ होय ते सदा सर्वदा सदाचारी होय धन्य के० प्रशंसा करवा योग्य छे ५ क्रूर नहीं के० अक्लिष्टचित्त होय एटले संक्लेशपरिणामी न होय ६ आलोक परलोकना अपायथी भीर के० वीहीतो रहे ७ असठ एटले परने ठगे नहीं ८ सार के प्रधान दखिम के० दाक्षिण्य गुणवंत होय एटले परनी प्रार्थनानो भंग न करे ॥ २॥ ९ लज्जालुओ १० दयालुओ, ११ सोमदिहि मजथ्थ । १२ गुणरागी १३ सतकथ १४ सुपख्ख १५ दीरघदरशि अथ्थ ॥३॥ अर्थ-९ लज्जालुओ के० स्वकुलादिकनी लज्जावंत एटले अकार्यवर्जक १० दयालुओ के० प्राणीमात्रनी अनुकंपावंत ११ सोम्यदृष्टि ते यथावस्थित विचारनी दृष्टि छे अने दूर देशत्यागी ते सौम्यदृष्टि कहिये तेज मज्झत्य के० मध्यस्थ राग द्वेष रहित एटले सौम्यदृष्टि अने मध्यस्थ ए पदे एकज गुण कहिये १२ गुणरागी ते गुणी जीवनो पक्षपाती होय १३ सतकथ ते भली कथानो कहेनार एटले धर्मकथा वाहाली छे जेने १४ सुपक्ख के० सुशील अनुकूल परिवारयुक्त होय १५ दीरघदरसी के० अनागतकाल विचारीने परिणामे सुंदर कार्यकारी होय अत्य के० ए अर्थ छे. १६ विशेषज्ञ १७ वृद्धानुगत, १८ विनयवंत १९ कृतजाण | २० परहितकारी २१ लब्धलख्ख, गुण एकवीस प्रमाण ॥४॥ अर्थ-१६ विशेषज्ञ के० पक्षपात रहितपणे गुणदोष विशेपनो जाण १७ वृद्धानुगत के० परिणतमति पुरुषने सेवनारो होय १८ विनयवंत के० गुणाधिक पुरुपने विषे गौरवकों १९ कृतजाण के० कर्या गुणनो जाण २० परहितकारी के० निर्लोभीथको परोपकार करे एटले जे दाक्षिण्य गुण ते परनो पार्यो उपकार करे अने परहितकारी ते पोताथी उपकार करे एटलं आठमा गुणथी वीसमा गुणमा विशेष जाणवू २१ लब्धलक्ष गुण ते धर्माधिकारी तेहनो भावार्थ-'लन्धमिव लब्धं लक्ष्य शिक्षणीयं धर्मानुष्ठानं येन स लब्धलक्ष्यः मुशिक्ष:मुशिक्षणीयः' इति ए एकवीस गुणसंपन्न जे जीव ते धर्मरत्नने योग्य होय ॥४॥ खुद नहीं ते जेह मने, अति गंभीर उदार । न करे जन उतावलो, निज परनो उपगार ॥५॥ अर्थ-हवे ए एकवीस गुण अर्थ विस्तारें कहे छे खुद्द नहीं ते के० अक्षुद्र तेने कहिये जेनुं मन अति गंभीर होय उदार होय तुच्छ न होय केमके जे उतावलो मनुष्य होय ते पोताने तथा परने उपकार करी शके नहीं एटले गंभीर होय ते पोताने तथा परने उपकार करे पण उतावलो होय ते न करी शके ए प्रथम अक्षुद्र गुण ॥ ५॥
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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