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________________ (७७) ध्यान थाय ते आठ चित्तना नाम कहे छे. यदुक्तं चतुर्दशे पोडशके-"१ खेदोर द्वेग ३ क्षेपो ४ स्थान ५ भ्रांत्य ६ न्यमु ७ द्रुगा ८ संगैः । युक्तानि हि चित्तानि प्रवंधतो वर्जयेन्मतिमान् ॥१॥" आ आठ चित्तने दोषे करीने ध्यान करी शके नहीं तेमां प्रथम खेदनामा दोष कहे छे खेद के० थाक जेम पंथे हिंडतां थाके तेनी पेरे खेद दोषे करी क्रियामां मननी दृढता के० एकाग्रपणुं ते न होय एटले क्रियामा प्रणिधान न रहे अने जे मणिधान ते धर्म नो मुख्य हेतु छे जेम करशण (खेती)मां पाणी ते मुख्य हेतु छे तेम क्रियामां प्रणिधान ते मुख्य हेतु छे ।। १२ ।। वेठा पण जे उपजेरे, किरियामां उद्वेगरे । योगद्वेषथी ते क्रियारे, राजवेठसम वेगरे ॥ प्रभु० मुज०१३॥ अर्थ-हवे उद्वेगनामा वीजो दोप वखाणे छे खेदविना पण वेठां थका उद्वेग थाय वेनी पेरे उद्वेगदोपमां पण जाण. वेठां थकां पण जे क्रिया करे तेमां उद्वेग उपजे तो ते क्रिया करतां ते प्राणीने मुख जे चिचनी प्रसन्नता ते केम उपजे जे वारे क्रियामां उद्वेग थयो ते वारे द्वेप उपनो ते द्वेपथी राजानी वेठनी पेठे कथंचित् क्रिया करे वेग के० उतावलो करे एवी रीतें राजवेठनी पेठे करे तेने जन्मांतरे योगीना कुलने विषे जन्म पण न होय ए अर्थ पोडशकमां जोइ लेवो ॥ १३ ॥ भ्रमथी जेह न सांभरेरे, कांइ अकृत कृत काजरे । तेहथी शुभ किरियाथकार, अर्थ विरोधीअकाजरे॥प्रभु० मुज०१४॥ अर्थ-हवे यद्यपि पोडशकमां भ्रांतिनामा पांचमो दोष कह्यो छे तथापि उपाध्यायजीयें इहां त्रीजो भ्रांतिनामा दोप वर्णव्यो छेएम अनानुपूर्वी पण व्याख्यानतुं अंग छे हवे म्रांतिनो अर्थ कहे छे भ्रांति के० वस्तु अन्य होय विहां अन्य जाणे जेम शुक्तिका (छीप)ने विषे रजतनी भ्रांति थाय तद्वत् भ्रमे करी जे वस्तु सांभरे नहीं जे में धर्मकृत्य कर्यु अथवा नथी कर्यु उपलक्षणथी में पाठ उच्चों के नथी उच्चर्यों इत्यादि ते शुभ "क्रिया थकी पण अर्थ विरोधी ए जे अकाज के० इष्टफलरूप जे कार्य ते न थाय तेने अकाज कहिये ॥ १४ ॥ शांत वाहिता विण होवेरे, जे योगे उत्थानरे। त्याग योगछे तेहथीरे, अणछंडातुंध्यानरे । प्रभु० मुज०१५ ॥ अर्थ-हवे उत्थाननामा चोथो दोप वर्णवे छे उत्थान के चित्तनी अप्रशांतता तथा मन प्रमुखनी उत्सुकता थकी जेम कोइक पुरुष मदिरा प्रमुखें करी मदावष्टब्ध थयो होय तेनी पेठे जे योगने उत्थानदोषे करीने शांतवाहिर्ता विण होय के शांतवाहिता न होय एटले जे क्रिया करे तेमा उद्वेग रहे पण ठरण न होय ते क्रिया केवी छे के त्यागयोग के. त्यागवा योग्य छे पण तेहथी के० ते त्यागयोग क्रियाथी अणछंडातुं ध्यान के० छंडातुं
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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