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________________ तिरेके गुणद्धिपणो देखाडे छे १ गच्छवासी के० गच्छमां बसे २ अणुओगी के० अर्थ धारे ३ गुरुसेवी के० गुरु आदिकनी सेवा करे ४ अनियतवासी के० उपविहारी ५ आयुक्त ते आउत्तो के० उपयोगी होय ए पांच पदमां जेम जेम एकेका पदनी वृद्धि थाय तेम तेम बहुगुण होय अने विशेष आराधक याय. यत:-"१ गच्छगओ २ अणुओगी ३, गुरुसेवी ४ अनिओ गुणाउत्तो, संजोएण पयाणं, संयमआराहगा भणिया ।। १ ॥" इत्युपदेश मालायां ॥ ११ ॥ दोषहाणी गुण वृद्धि जयणा भाषे सूरि, ते शुभ परिवारें हुये विघन टले सवि दृरि । देव फले जो आंगणे तुझ करुणा सुर वेलि, शुभ परिवारें लहियें तो सुख जस रंगरेलि ॥ १२ ॥ अर्थ-एम दोपनी हाणी थाय तथा गुणनी वृद्धि याय अने जयणा के जतना थाय एटले बहु लाभ अल्पदो प्रवृत्ति थाय ते एहवा गुण क्यारे आवे तेहनो उत्तर भाषे सरि के० आचार्य भाषे छे के ते शुभपरिवारे हुए के० एवा गुण तो परिवार शुभ होय तिवारे आवे तथा विघ्न सर्व दूर टले ते माटे हे देव तुझ के० तमारी करुगारूप जे सुर वेली के० कल्पवृक्षनी वेलडी ते आंगणे फले के मारा आत्मरूप जे आंगणु विहां जो सफली थाय तो ते शुभपरिवार पामियें एटलाज माटे उपदेशमालाना कर्तायें कहुं छे. यतः-"सिंहगुरु सुसीसाण, भई गुरुवयणसहइंताणं । वयरो किर दाही वायणत्ति न विकोवियं वयणं ॥॥" ते माटे शुभपरिवार पामवो दुष्कर छे ते शुभपरिवारे करी मुखयशनी रंगरेल पामियें एटले सेहेजानंदस्वरूपना रंगनी रेल तेहनो प्रवाह पामीयें ए सातमी ढालमां कडं जे हे देव तमारी करुणारूप मुरवेली जो फले तो मुखयश पामिये ते माटे हवे आठमी ढालमां करुणा विशेष जे दया तेहन्तुं स्वरूप कहे छे ॥ १२ ॥ ॥ ढाळ पाठमी॥ ॥ प्रभु चित्त धरीने अवधारो मुझ वात-ए देशी ॥ कोइ कहे सिद्धांतमांजी, धर्म अहिंसा सार । आदरिये ते एकलीजी, त्यजीयें बहु उपचार | मनमोहन जीनजी, तुजवयणे मुजरंग ॥१॥ अर्थ-पली कोइक एम कहे'छे के सिद्धांतमूत्रने विषे एम कडंछे जे धर्म अहिंसा के. दया धर्म तेज सार के प्रधान छ “नत्यि अहिंसा समो धम्मो” इति वचनाव, माटे एकली अहिंसाज आदरीयें वीजा बहु के० अनेक उपचार के० उपायने त्यजीयें के० मृकी दइयें
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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