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________________ (c) एक विहारे देखो आचारे संवाद, बहु क्रोधादिक दृषण वली अज्ञान प्रमाद । वलिय विशेषे वार्यों छे अव्यक्त विहार, पंखीपोत दृष्टांते जाणो प्रवचनसार ॥६॥ अर्थ-वली एकाकी विहार करे तेहनो आचारें के० आचारांगने विषे संवाद क. वचन छे ते कहे छे जे ते आचारांगना पांचमा अध्ययनना प्रथम उद्देशाने विषे देखो के. जुओ एक विहारीने बहु क्रोष आदि शब्दें मान प्रमुख पण लेवा. यथा-"इह मेगेसि एगचरिया भवति बहुकोहे बहुमाणे बहुमाए बहुलोमे बहुरते वहुनडे बहुसठे बहुसंकप्पे आसवसकी पलिओवछो" एमां विषम पदनो अर्थ लखियें छैयें-बहुरते के बहुपाप बहुनडे के० नाकियानी पेठे भोगने अर्थे वहुवेषना करनारा तथा बहुसठे के० अनेक प्रकारे शठ तथा बहु संकल्प उपजे आसव के आश्रय जे हिंसा प्रमुख तेहनो सक्कि के० सक्त एटले संगी अने पलिओवछने के० पलित एटले कमें करी अवच्छन एटले ढाक्यो इति. वली वीजा दोष कहे छे-अज्ञान ममाद थाय एटले ए भाव जे एज आलावे पद छे "उछियवादं पवय माणे मा मे केइ अदक्खु अन्नाणपमायदोसेण" इति. उठियवाद पवयमाणे के० अमें संयमचारित्रमा उजमाल यया छै एम वोलवा मा मे केइ अदक्खु के० आश्रवमा मवतां थका जाणे मुझने कोइ देखतुं नयी एम अन्नाणपमायदोसेणं के० अज्ञान प्रमाद दोषे सहित मवर्चे तेने बली विशेषे करीने आचारांगमां अव्यक्त विहार वारयो छे अव्यक्त के वय पण पूरी नहीं अने श्रुत पण पूरु नहीं तेहने अव्यक्त कहीये आचारांगपंचमाध्ययनने उद्देशे चोथे कटु छे. यथा-"गामाणुगामं दुइज्झमाणस्स दुज्जातं दुपरकतं भवति अवियत्तस्स भिक्खुणों" एहनो अर्थ-गामाणुगाम दुइज्झमाणस्स के एक गामथी बीजे गाम एकाकी विचरवा ने दुजातं के दुष्ट गमन छे अहंन्नकमुनिनी पेठे दुपरकत के दुष्टपर आकांतछे थुलिभद्रना ईविंत सिंह गुफावासि मुनिने जेम कोश्यायें आक्रम्या तेम सर्व मुनिने न होय ते माटे विशेषण करे छे अवियत्तस्स भिक्खुणो के० अव्यक्त भिक्षुने एटले अव्यक्त भिक्षु वे मकारना छे एक श्रुत अन्यक बीजो बय अन्यक्त जे आचारमकल्प न भण्या होय अने गच्छयां रखा होय ते श्रुत अव्यक्त कहीये तथा गच्छथी निकल्या ते नवमां पूर्वनी त्रीजी वस्तु न भण्या होय ते गच्छ निरगत अव्यक्त कहीयें गच्छमा रह्या थका सोल वर्षना थाय विहां लगे वय अव्यक्त कहीयें अने जे गच्छ निरगत ते त्रीस वर्षना थाय त्यां लगे वय अव्यक्त कहीयें इति इहां चोभंगी छे १ श्रुत अव्यक्त अने वय अव्यक्त होय ते तो एकाकी विहार फरेज नहीं केमके संयमात्म विराधना थाय माटे न करे २ श्रुत अव्यक्त अने वय व्यक्त ते पण अगीतार्थ माटे संयमात्म विराधना थाय माटे तेमने एकाकी विहार न कल्पे३ श्रुत व्यक अने वयथी अव्यक्त तेहने पण न कल्पे बालपणाथकी कुलिंगी तथा गृहस्थने पराभव→ स्थानक होय ते माटे ४ श्रुत व्यक क्या वय व्यक्त वेहने पण एकलमल्ल प्रविमा
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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