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________________ शिष्य कहे जिम जिन प्रतिमाने | जिनवर थापी नमियें || साधुवेस थापी आतिसुंदर । तिम असाधुने नमियरे ॥ जिन० वी० २०॥ अर्थ-वारे शिष्य बोल्यो जे जिम जिनेश्वरनी प्रतिमामांहे ज्ञानादिक गुण नयी अने तेहने तीर्थकरनी बुद्धिये नमस्कार करतां महोटो लाभ थाय छे महोटी निर्जरा थाय छे. यथा आवश्यके शिष्य वचनं-" तित्थयरगुणा पडिमासु नत्थि निस्संसयं वियाणंतो। तित्थयरूत्ति नमंतो, सो पावइ निजरं विजलं ॥१॥” इति । तेम अति सुंदर एहवो साधु वेष थापी असाधुने पण नमियें एटले गुण विनानी जिम जिन प्रतिमा छे तेहने नमतां निजरा थाय तेम पासत्यादिकमां जो साधुनो गुण नथी तो पण साधुनो वेप तो छे माटे जो पोतानु मन शुद्ध छे तो तेहघाने नमतां लाभ थाय कारण के लाभ अथवा खोट ते तो पोताना अध्यवसाय आश्री छे. उक्तंच-"लिंगं जिणपन्नत्तं, एवं नमंतस्स निजरा विउला। जइवि गुणविपहिणं, पंदइ अज्झप्पसोहिए ॥१॥” इति शिष्य वचनं ॥ २०॥ भद्रबाहु गुरु बोले प्रतिमा । गुणवंती नहीं दुष्ट ॥ लिंग मांहे थे वानां दीले । ते तुं मान अदुष्टरे ॥ जिन० वी० २१ ॥ अर्थ-हवे आचार्य उत्तर आपे छे जे श्रीभद्रबाहुगुरु आवश्यकमां एम कहे छे के प्रतिमा गुणवंती नथी तेम दुष्ट पण नथी माटे तेहने गुणवंती मानियें एटले अदुष्टपणानो आरोप करियें तो थाय अने लिंगमांहे तो गुण तथा दोष ए वे वानां देखाय छे ते तुं हे अदुष्ट के० गुणवंत शिष्य मान इति गाथार्थ । हवे एनो भावार्थ कहे छे जे जिनपतिमामांहे गुण नथी तेम दोप पण नथी माटे पोताना अध्यवसायनी शुद्धिये नमतां लाभ थाय, इहां कोइ कहेशे जे परिणामे लाभ थाय छे तेवारे प्रतिमानु शुं काम छे ? तेहने फहीयें जे शुद्ध परिणामनो हेतु ते प्रतिमाज छे तेवारे ते कहेशे जे साधुनो वेप ते पण शुद्ध परिणामनो हेतु छे तेहने कहे जे साधु वेप पुरुपपणुं ते प्रतिमाने वरावर न थाय केमके प्रतिमा हजारोगमें जोइये पण सर्व एकाकार छ सावध क्रिया नथी करती तेम निरवद्य क्रिया पण नथी करती अने साधुलिंग तो कोइक स्थानकें सावध कर्म करतो देखीयें तथा कोइक स्थानके निरवध शुद्ध चारित्र पालतो देखीयें माटे वरावर न थाय अने जिनमतिमामांहे जिन गुणनो आरोप करीने परिणाम करतां निर्जरा थाय पण पासत्यादिकने वंदना करतां कोना गुण संभारीश तेवारे ते बोल्यो जे वीजा रुडा साधुना गुण आरोप करीने प्रणाम करिशुं तेहने कहे छे जे निर्गुणीने विषे गुणनो आरोप थाय नहीं अने जो गुणनो आरोप करीयें तो विपर्यास थाय अने जे विपर्यास तेतो कर्मबंधनो हेतु छे ते माटे जिहां गुण तथा दोष न होय तिहां आरोप थाय पण अन्यथा आरोप न थाय यदुक्तं वंदनावश्यके-"संतातित्थयरगुणा, तित्थयरे तेसिमं तु अयप्पं । न य सावजा किरिया, इयरेसु धुवा समणुमना॥१॥ चो० ॥ जह सावज्जा किरिया, नत्थि उ पडिमासु एवमियरावि । तयमा नत्थि
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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