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________________ MAHARA दाढसो गाथाचं स्तवन. (१०७) विषे ॥"णिवद्धणिकायया जिणपन्नत्ता भावा"। एवं सूत्र छे. तेहमां णिषद्ध के सूत्रे गुंथ्या जे, भाव के० अर्थ तथा, णिकायया के० ते अर्थ निकाच्या ते नियुक्तिने विषे ए अर्थ छे तो नियुक्ति केमन माने? वली ।। 'असंखिज्झाओ निज्जुतिओं' एहवा समवायांग प्रमुखमा पाठ ठाम ठाम छे. उपधिमान गणणादिक के० उपधिनुं प्रमाण, तथा गणती इत्यादिक, किहां लहे के० क्यां पामे ? विणु मार्ग विचार के० नियुक्ति विना जिनशासनना मानो विचार, एटले ए भाव जे नियुक्ति विना उपधिमान ते एवडा महोटा पहोला ते क्या पागीए? तथा गणतीए केटलां राखवां ? इत्यादिक घणी वातो मार्गनीछे ते सर्व नियुक्ति विना न लामे. इति. एटले एवं देखाइयु जे, लांवा लांवा रजोहरण राखे छे, तथा मुगटी पहेरे छे, इत्यादिक कीआ सूत्र उपर करे छे ? मुखे मुहपत्ति बांधी मार्गमां हीडे छे ते कीआ सूत्र उपर वांधे छे? उलटुं सिद्धांतमां तो न बांधवी जणाय छे. जे माटे श्री गौतमजी मृगा पुत्रने जोवा गया ते वारे राणीए कह्यु के मुख वांधो. जो वांध्यु होय तो बांधो एम | करवा कहे ? वली मूल्ने पूछीए छैए जे नाक उघाई राखो छो तेमां वायुकायनो घात याय छे.ते वारे कहे छे जे दशवकालिके ॥ मूहेण वा ।। एवो पाठ छे. आपण नक्केण वा ।। एहयो पाठ नथी. ते माटे मुखने वायरे वायुकाय हणाय पण नाकने वायरे न हणाय. एम कहे छे तेने कहीए जे, मुख का तेमां नाक आवी गयु. नहींतर मृगाराणीए कायु जे मुख वांधो; तेवारे नाक वांधो कां न कहुं ? काम तो नाशिकानुंछे. दुर्गंध आवे माटे कछु छे. ते माटे दशवकालिक मध्ये पण मुख कहेतां नाशिका आवी गइ जाणवी. हवे ते कुमविने नियुक्तिनो जवाब देवा ठेकाणु रह्य नहीं; ते वारे बुडतो फेणना वाचका भरे ए न्याये वोल्यो के नियुक्ति मानुं तो खरी. सूत्रमा कही ते ना केम कहेवाय ? पण ते वि. च्छेद गइ एम कहे छे ॥ १८ ॥ तेहने उत्तर वालवा गाथा कहे छे. जो नियुक्ति गइ कुमति कहे ॥ सूत्र गयां नहीं केम || जेह वाचनाए आव्यु ते सवे ।। माने तो होए खेम ॥स०॥१९॥ अर्थ-जो नियुक्ति गइ एम कुमति कहे छे तेहने उत्तर कहे छे, तो सूत्र गयां नहि केम के० ते वारे सूत्र गयां कम न कहे ? जे माटे ठाणांगसूत्रमा अंतगड सूत्र तथा अनुत्तरोववाइ तथा प्रश्नव्याकरण-ए रणना अध्ययन कयां छे. ते हमणांनी वाचनाए नयी जणाता. वली श्री समवायांगसूत्रमा प्रश्नव्याकरणनी हुंडी कही छे तेमांचं प्रश्नव्याकरण मध्ये आज कांइ नथी. ते माटे जेह वाचनाए आन्यु के०जे पुस्तकारूढ वाचनाए जे गुरु परंपराए आव्या सूत्र, ते मानीए तो नियुक्ति पहेला मानीए. चारित्र क्रियाना सर्व विशेष भाव नियुक्ति मध्ये छे, ते माटे वाचनाए आव्यु ते मानीए तो खेम के. कुशल वर्ते. एटले आत्माने हित याय ॥ १९ ॥ ए रीते शास्त्र वाते समजाच्या जाण पुरुष होशे ते समजशे; बाकी तो जेहबु थाय • रोहवू कहे के.
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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