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________________ दोढसो गाथार्नु स्ववन. (८९) उपधान छे. यथा पहेलं उपधान, पंचमंगलमहामुअखंघ, वोजु पडिकमणासुअखंघ, श्रीखं शक्रस्तवाध्ययन, चोथु चैत्यस्तवाध्ययन, पांचमु नामस्तवाध्ययन अने छटुं श्रुतस्तवसिद्धस्तवाध्ययन ए छ तेणे के० ते उपधाने करीने, आवश्यकमूत्र शुद्ध थाय. गृही के० गृहस्थ सामायिक आदे श्रुत भणे के० सामायिक आदि देइने, आदि शब्दयी दृष्टिवादपर्यंत श्रुतसिद्धांत भणे, दीक्षा लेइने अलुद्ध के० लोभ, उपलक्षणथी क्रोधादिक तेहनो त्याग करीने ते उपधाननो अधिकार महानिशीथ मूत्र मध्ये विस्तारे छे ते जाणवू. ते कहता ग्रंथ वधे ते माटे नथी लखता. तथा मूढा महानिशीथ सूत्र मानता नथी; ते नथी मानता तेने केहेवाना उत्तर प्रत्युत्तर घणा छे, पण नथी लखता. तथा सुबुद्धि मंत्री प्रमुखने अधिकारे वीजे पण सर्व ठगमे दीक्षा लीधा पछी । सामाइयमाइयाई एकारस अंगाई अहिजइ के. सामायिक आदि देइने अगीआर अंग भणे एहवा पाठ छे. इति सप्तम गाथार्थ ॥७॥ वली श्रावक मूत्र न भणे ते देखाडे छे. सूत्र भण्या कोई श्रावक नवि कह्या । लद्धहा कह्या तेह ॥ प्रथम ज्ञान ने पछी दया कही । तिहां संजत गुण रेह ॥ स०॥८॥ अर्थ- सूत्र भण्या कोइ श्रावक नवि कह्या के० कोइ श्रावक कोइ सूत्रमा मूत्र भण्या कह्या नथी. लछा कया वेह के० उलटा लट्ठा कह्या छे. अर्थ-लाध्या छे जेणे इत्यादिक तुंगीआ नगरी प्रमुख श्रावकने अधिकारे कया छे. यतः भगवती सूत्रे शतक बीजे उद्देशे पांचमे-“लद्धट्टा गहियट्ठा पुच्छिट्ठा अभिगयट्ठा विणिच्छियट्ठा ।।" इति. अर्थ-लद्धडा के अर्थ ग्रया छेतेहथी अर्थ लाध्या छे. पुच्छियहा के०संशय थकां पूछया छ अर्थ जेमणे, अभिगयठा के प्रश्न करी निर्णय कर्या-अर्थनु अभिग्रहण जाणपणु थयु. विणिच्छियष्ठा के० एटला माटे निश्चित अर्थ छे जेणे, एम का छे; पण । लद्धमुत्ता गहियमुत्ता ।। इत्यादि पाठ कहींए नथी. उलटुं दीक्षा लीधा पछी पण एटलो काल गये भणे, एम कर्जा छे ते लखीए छैए.-" तिवासपरियागस्स निग्गंथस्स कप्पइ आयारप्पकप्पे नाम अज्अयणे उहिसित्तएवा, च. उवासपरियागरस निग्गंथस्स कप्पति । सुअगडे नाम अंगे उहिसित्तए, पंचवासपरियागस्स समणस्स कप्पति दसाकप्पव्यवहारा नामज्झयणे उहिसित्तए, अठवासपरियागस्स समणस्स कप्पति ठाण समवाए नार्म अंगे उद्देसित्तए, दसवासपरियागस्स कप्पति विवाहे नाम अंगे उधिसित्तए, एकारसवासपरियागस्स कप्पति खुडिआविमाणपविभत्तिमहलियाविमाणपविभत्ति अंगचूलिया वगचूलिया विवाहचूलिया नाम दिसित्तए, बारसवासपरि यागस्स कम्पति अरुणोषवाए वरुणोववाए गरुलोववाए घरणोववाए वेसमणोववाए वेलंघरोववाए अज्झयणे उधिसित्तए, तेरसवासपरियाए कप्पति उठाणमुए समुशाणमुए देविदोषवाए नागपरियापलिया नाम अज्झयणे उदिसित्तए, चउदसवास क . तस्यच तथास
SR No.010663
Book Title125 150 350 Gathaona Stavano
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDanvijay
PublisherKhambat Amarchand Premchand Jainshala
Publication Year
Total Pages295
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, & Religion
File Size14 MB
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