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गाथा २८६ ] लब्धिसार
[ २२७ प्रमाण लिये जो विवक्षित समयमें अपूर्वकृष्टिकी उनमें समान प्रमाण लिये समपट्टिकारूप द्रव्य देना चाहिए, इसका ही नाम अधस्तनकृष्टिद्रव्य है। इस द्रव्यको देनेपर अपूर्वकृष्टियां प्रथमपूर्वकृष्टिके समान हो जाती है। इसका प्रमाण इसप्रकार प्राप्त किया जाता है
पूर्वोक्त पूर्वकृष्टि सम्बन्धी चयको दो गुणहानि से गुणा करने पर पूर्वकृप्टियो में से प्रथमकृष्टिके द्रव्य का प्रमाण आता है सो एक कृष्टिका द्रव्य इतना है तो समस्त अपूर्वकृष्टियोंका कितना होगा ? ऐसे त्रैराशिकसे उस प्रथमपूर्वकृष्टिके द्रव्यको समस्त अपूर्वकृष्टिके प्रमाण से गुणा करनेपर अधस्तनकृष्टिका द्रव्यप्रमाण होता है। यहां, प्रथम समयमें की गई कृष्टियोके प्रमाणको असंख्यातगुणे अपकर्षणभागहारका भाग देने पर द्वितीय समयमें की गईं कृष्टियोका प्रमाण होता है ऐसा जानना चाहिए । इस प्रकार पूर्वोक्त अधस्तनशोर्षविशेषद्रव्य और अधस्तनकृष्टि द्रव्य देने पर समस्त पूर्वअपूर्वकृष्टि समान प्रमाण लिये हो गईं ।
वा अपर्वकष्टिकी प्रथमकष्टिसे लगाकर ऊपर-ऊपर अपूर्वकष्टि स्थापित करके फिर उनके ऊपर प्रथमादि पूर्वकृष्टि स्थापित करनी चाहिए । इसप्रकार स्थापित करके चय घटते क्रमरूप एक गोपुच्छ करने के लिये' सर्वकृष्टि सम्बन्धी सम्भवचयका प्रमाण लाकर अन्तकी पूर्वकृष्टिमे एक चय, उसके नीचे उपान्त्यपर्वकष्टि में दो चय; ऐसे क्रमसे एक एक चय अधिकाधिक करते हुए प्रथम अपूर्वकृष्टि पर्यन्त देना । इसीका नाम उभयद्रव्यविशेषद्रव्य है । इसे देने पर समस्त पूर्व अपूर्वकप्टि के चय घटते क्रमरूप एक गोपुच्छ होता है। इसका प्रमाण इसप्रकार प्राप्त किया जाता है
पर्व समयमे कृष्टिमे जो द्रव्य दिया था और इस विवक्षित समयमे जो कष्टिमें देने योग्य द्रव्य है, इन दोनोको मिलानेपर जो द्रव्यप्रमाण हुअा उसको पूर्वापूर्व (पूर्वअपर्व) कृष्टियोके योगरूप गच्छसे विभक्त करनेपर मध्यमधन प्राप्त होता है। इसको एककम गच्छके आधेसे हीन दोगुण हानिसे विभक्त करनेपर यहाके चयका (विशेपका)
१. अब इनकी समान द्रव्यरूप स्थितिको मिटाकर चय घटता क्रमरूप गोपुच्छ को करने के लिए
निम्नानुसार द्रव्य मिलाते है