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________________ गाथा ५८] क्षपणासारा । ५३ काण्डकघातके द्वारा स्थिति सत्कर्म के बहभागका घात होते-होते एकभाग शेष रह जाता है । मोहनीय कर्मका स्थितिसत्त्व संख्यातवर्षप्रमाण है। अतः प्रथमस्थितिकाण्डकघातकी अन्तिमफालिका पतन होनेपर मोहनीयकर्मसम्बन्धी स्थितिसत्त्वके सख्यातबहुभाग घात हो जाने पर शेष स्थिति सत्त्व सख्यातगुणाहीन अर्थात् संख्यातवेंभाग रह जाता है। शेष ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय, वेदनीय, नाम और गोत्र इनछह कर्मोके स्थितिसत्कर्मका असख्यात बहुभाग उसो (प्रथम) स्थितिकाण्डकघातके द्वारा घाता जानेसे शेष स्थितिसत्त्व असंख्यातवेभागहीन अर्थात् असंख्यातवेंभाग रह जाता है । इनछह कर्मोंका स्थितिसत्त्व, मोहनोयकर्मके स्थितिसत्त्वसे असख्यातगुणा होने के कारण (गाथा ५६) असंख्यातवर्षप्रमाण है । अतः स्थितिसत्त्वका बहुभाग अर्थात् असख्यातबहुभागका घात प्रथमस्थिति काण्डकको अन्तिमफालिके पतनके समय हो जाता है । 'सत्तरहं पढमढिदिखंडे पुण्णेति घादिठिदिबंधो। संखेजगुणविहीणं अघादितियाणं अवगुणहीणं ।।५८।४४६।। अर्थः-सातकर्मोका प्रथमस्थितिकाण्डक पूर्ण होनेपर घातियाकर्मो का स्थितिबन्ध संख्यातगुणाहीन और तीन अघातियाकर्मोंका असंख्यातगुणाहोन हो जाता है । विशेषार्थः-सात (पुरुषवेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा) नोकषायको क्षय करनेके लिए अन्यस्थितिकाण्डक, अन्य स्थितिबन्धापसरण और अन्य ही अनुभागकाण्डकका प्रारम्भ होता है। स्थितिकाण्डकके द्वारा स्थितिसत्त्वका घात होता है, स्थितिबन्धापसरणसे स्थितिबन्ध घटता है और अनुभागकाण्डकके द्वारा अप्रशस्त (अशुभ-पाप) प्रकृतियों के अनुभागका घात होता है। हजारों अनुभागकाण्डकोंके हो जानेपर एक स्थितिकाण्डक पूर्ण होता है और अन्तिम अनुभागकाण्डकघात व स्थितिकाण्डक युगपत् समाप्त होते है । एक स्थितिकाण्डकका काल और स्थितिबन्धापसरणका काल परस्पर तुल्य है । सात नोकषायोके स्थितिसत्त्वका घात करने के लिए जो प्रथमस्थितिकाण्डक प्रारम्भ हुआ था उसके पूर्ण होने पर अर्थात् प्रथमस्थितिकाण्डककाल समाप्त होनेपर प्रथमस्थितिबन्धापसरणद्वारा स्थितिबन्धका बहुभाग घट जाता है अर्थात् प्रथमस्थितिबन्धापसरण पूर्ण होने पर जो स्थितिबन्ध होता है वह पूर्वस्यितिबन्धका १. क० पा० सुत्त पृष्ठ ७५४ सूत्र २३५-३६ । धवल पु० ६ पृष्ठ ३६१ । ज० ध० मूल पृष्ठ १९६६ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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