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________________ पृष्ठ शब्द शब्द पृष्ठ परिभाषा "अनुकर्पणमनुकृष्टिः" अर्थात् उन परिणामो की परस्पर समानता का विचार करना, यह अनुकृष्टि का अर्थ है । अनुदीग २४६ देखो प्रकरणोपशामना की परिभाषा मे। अनुदीर्णोपशामना २४६ प्रकरणोपशामना का दूसरा नाम ही अनुदीर्णोपशामना है। अनुभागकाण्डक- ४४, क्ष सा. पारद्धपढमसमयादो अतोमुत्तण कालेण जो धादो णिप्पज्जदि सो अणुभागखडय घादोरणाम। धवल १२/३२ घात अर्थ-प्रारम्भ किये गये प्रथम समय से लेकर अन्तर्मुहूर्त काल के द्वारा जो घात निष्पन्न होता है वह अनुभाग काण्डकघात है । काण्डक पोर को कहते हैं । कुल अनुभाग के हिस्से करके एक-एक हिस्से का फालि क्रम से अन्तर्मुहूर्त काल द्वारा अभाव करना अनुभाग काण्डकघात कहलाता है। [घ० १२/३२ विशे०] विशुद्धि मे अप्रशस्त प्रकृतियो के अनुभाग का अनन्त बहुभाग अनुभागकाण्डक घात द्वारा घात को प्राप्त होता है । करण परिणामो के द्वारा अनन्त वहुभाग अनुभाग घाते जाने वाले अनुभागकाण्डक के शेप विकल्पो का होना असम्भव है । एक एक अन्तर्मुहूर्त मे एक एक अनुभागकाण्डक होता है। एक एक अनुभागकाण्डकोत्कीरण काल के प्रत्येक समय मे एक-एक फालि का पतन होता है। कर्म के अनुभाग मे स्पर्धक रचना होती है। प्रथमादि स्पर्धक मे अल्प अनुभाग होता है तथा आगे-आगे अधिक । वहा समस्त स्पर्षको को अनन्त का भाग देने पर बहुभाग मात्र ऊपर के स्पर्धको के परमाणुप्रो को एक भाग मात्र नीचे के स्पर्धको मे परिणमाते हैं । वहा कुछ परमाणु पहले समय में परिणत कराये जाते हैं, कुछ दूसरे समय मे, कुछ तीसरे मे, ऐसे अन्तर्मुहूर्त काल में समस्त परमाणुनो को परिणत करके ऊपर के स्पर्धको का अभाव किया जाता है । यहा प्रत्येक समय में जो जो परमारण नीचे के स्पर्धकरूप परिणमाये उनका नाम फालि है। इसप्रकार अन्नमुहूर्त मे जो कार्य किया, उसका नाम काण्डक है । इस अनुभागकाण्डक द्वारा जिन स्पर्धकों का प्रभाव किया वह अनुभाग काण्डकायाम है। एक एक स्थितिकाण्डकघात के अन्तर्मुहूर्त काल के सत्यातहजारवें भाग प्रमाण अन्तर्मुहूर्त काल मे ही एक अनुभागकाण्डकघात हो जाता है। ल० सा० ७६, ८०, ८१ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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