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________________ क्षपणासार ३१४ ] [ गाथा ३६०-६१ जानना। उससे गिरनेवालेके अपूर्वकरणके चरमसमयमे स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है। यद्यपि स्थितिसत्त्वका प्रमाण अन्तःकोडाकोड़ी है तथापि स्थितिबन्धसे संख्यातगुणा है।' क्योकि सम्यग्दृष्टिके सर्वदा स्थितिबंधसे स्थितिसत्त्व सख्यातगुणा है। तप्पडमट्ठिदिसत्तं पडिवडअणियट्ठिचरिमठिदिसतं । अहियकमा चडबादरपढमट्ठिदिसत्तयं तु संखगुणं ॥३६०॥ अर्थ-उसी गिरनेवाले अपूर्वकरणका स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है (६६) । उससे गिरनेवाले अनिवृत्तिकरणका अतिम स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है (१७) । उससे चढ़नेवाले बादरलोभ अर्थात् अनिवृत्तिकरणका प्रथम स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है विशेषार्थ-उससे गिरनेवालेके अपूर्वकरणके प्रथम समयमे जो स्थितिसत्त्व है वह एक समयकम अपूर्वकरणके कालप्रमाण अधिक है, क्योकि उतरनेमें प्रथमसमयवर्ती स्थितिसत्त्वसे अंतिम समयवर्ती स्थितिसत्त्वकी हीनता उतने समयमात्र ही होती है।' उससे गिरनेवाले अनिवृत्तिकरणके अतिम समयमें स्थितिसत्त्व एकसमय अधिक है । उससे चढ़नेवाले अनिवृत्तिकरणके प्रथमसमयमें स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा है, क्योकि प्रथम समयमें अनिवृत्तिकरणके परिणामोसे स्थितिसत्त्वका खण्ड नही होता है। स्थितिकाण्डककी अतिम फालिके पतन होनेपर स्थितिघात होता है । (६६-६८) चडमाणअपुव्वस्ल य चरिमठिदिसतयं विसेसहियं । तस्लेव य पढमठिदीसत्तं संखेज्जसंगुणियं ॥३६१॥ अर्थ-चढनेवाले अपूर्वकरणके अंतिम स्थितिसत्त्व विशेषअधिक है (६६) । उसीका प्रथमस्थितिसत्त्व सख्यातगुणा है (१००) । विशेषार्थ--उससे चढ़नेवाले अपूर्वकरणके अतिम समयमें स्थितिसत्त्व विशेष अधिक है, क्योकि अतिमकाण्डककी अतिमफालिका प्रमाण पल्यके संख्यातवेंभागमात्र पाया जाता है, सो इतना अधिक जानना, इससे उसीका प्रथम स्थितिसत्त्व संख्यातगुणा १. क्योकि नीचे उतरते हुए के स्थितिकाण्डकघात तो है नही (ज. ध मूल पृ. १९३७, १६१३ तथा १९२६ यादि। २. उ.६ मूल पृ. १६३७।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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