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________________ गाथा ३७६ ] क्षपणासार [ ३०७ गुणी है (५०) । दर्शनमोहनीयकी अन्तरस्थितिया सख्यातगुणी हैं (५१) । विशेषार्थः-अवरोहक अध प्रवृत्तसयमीके प्रथम समयमे जिस गुणश्रेणि आयामका प्रारम्भ होता है वह पूर्वोक्त गुणश्रेणिनिक्षेप आयामसे संख्यातगुणा है, क्योकि स्वसस्थानसंयम परिणामकी प्रधानता है। उससे दर्शनमोहनीयका उपशान्तकाल अर्थात् द्वितीयोपशम सम्यक्त्वकाकाल संख्यात गुणा है क्योकि श्रेणि चढ़ने और उतरनेके कालसे, श्रेणोसे पूर्व व पश्चात् सख्यातगुणे कालमे भी द्वितीयोपशम सम्यक्त्व पाया जाता है। अर्थात् द्वितीयोपशम सम्यक्त्व श्रोणि चढने से पूर्व उत्पन्न हो जाता है। इस कालका प्रमाण श्रेणीके चढने उतरनेके कालसे सख्यातगुणा है और श्रेणी उतरने के पश्चात् भी श्रेणीके कालसे सख्यातगुणे कालतक द्वितीयोपशम सम्यक्त्व रहता है। इसप्रकार द्वितीयोपशम सम्यक्त्वका काल, श्रेणी चढने व उतरने के कालसे सख्यातगणा है। उससे चारित्रमोहकी जिन स्थितिनिषेकोको उत्कीर्ण करके अन्तर किया जाता है वह अन्तरायाम सख्यातगुणा है। उससे दर्शनमोहका अन्तर करते हुए जिन स्थिति निषेकोका आयाम अर्थात् अन्तरायाम संख्यातगुणा है।' नोट-यहॉपर अन्तरायामका काल द्वितीयोपशम सम्यक्त्वके कालसे अधिक कहा, किन्तु उस अन्तरायामके कालमे दर्शनमोहकी किसी एक प्रकृतिको अपकर्षणके द्वारा उदीरणा कर अन्तरायामका काल समाप्त कर दिया जाता है। भवराजेट्टाबाहा चडपडमोहस्स अवरठिदिबंधो। चडपडतिघादि अवरट्ठिदिबंधतो मुहुत्तो य ॥३७६॥ अर्थ - जघन्य आबाधा सख्यातगुणो है (५२) । उत्कृष्ट आबाधा संख्यातगुणी है (५३) । चढनेवालेके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (५४) । उतरनेवालेके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध सख्यातगुणा है ( ५५ ) । चढनेवालेके तीन घातियाकर्मोका जघन्य स्थितिबन्ध सख्यातगुणा है (५६) । उतरनेवाले के तीन घातियाकर्मोका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (५७) । अतर्मुहूर्त सख्यातगुणा है । विशेषार्थ-उससे चढ़नेवालेके सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समयमे पाये जानेवाले ज्ञानावरणादि कर्मोंके और अनिवृत्तिकरण उपशामकके चरमसमयमे पाये जाने१. जयधवल मूल पृ० १६३२-३३ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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