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________________ क्षपणासार गाथा ३७५-७६ ] [ ३०५ उपशमनकालोसे अधिक है (३८) । ३६-३७ व ३८वा ये तीन पद अधिकक्रमसे है। पडणस्त असंखाणं समयपबद्धाणुदीरणाकालो। संखगुणो चडणस्स य तक्कालो होदि अहिया य ॥३७५॥ अर्थः-उससे गिरनेवालेके असंख्यात समयप्रबद्धकी उदीरणा होनेका काल सख्यातगुणा है (३६) । उससे चढनेवालेके असख्यात समयप्रबद्धको उदीरणा होनेका काल अन्तर्मुहूर्तमात्र अधिक है (४०) । विशेषार्थः-उपशमश्रेणिसे गिरनेवालेके जबतक असख्यात समय प्रबद्धोकी उदीरणा होती है तबतकका वह काल मोहनीयके उपशामनकालसे सख्यातगुणा है, क्योकि नीचे उतरनेवालेके सूक्ष्मसाम्परायसे लेकर अन्तरकरणके स्थानसे नीचे वीर्यान्तराय आदि बारह कर्मोका सर्वघाति अनुभागबन्ध करके पुन. उसके नीचे सख्यातहजार स्थितिबन्ध होजाने तक इतना काल असंख्यात समयप्रबद्ध उदीरणाका है (३६) । उपशमश्रेणि चढनेवालोके जबतक असख्यात समयप्रबद्धोकी उदीरणा होती है तबतक का वह काल पूर्वकालसे अधिक है, क्योंकि चढनेवाला जहांपर असख्यात समयप्रबद्धकी उदीरणा प्रारम्भ करता है उस स्थानको अन्तर्मुहूर्त द्वारा पाकर उतरते हुएके असख्यात लोक प्रतिभागवाली उदीरणा प्रारम्भ होजाती है इसकारण इसका पूर्वस्थानसे विशेषाधिकत्व विरुद्ध नही है। पडणाणियट्टियद्धा संखगुणा चडणगा विसेसहिया। पडमाणा पुव्वद्धा संखगुणा चडणगा अहिया ॥३७६॥ अथ -उससे गिरनेवालेके अनिवृत्तिकरणकाकाल सख्यातगुणा है, क्योकि पूर्वोक्त सर्वपद अनिवृत्तिकरणके सख्यातवेभाग है (४१)। उससे चढनेवालेके अनिवृत्तिकरणका काल अन्तर्मुहूर्तमात्रसे अधिक है (४२)। उससे गिरनेवालेके अपूर्व १. ज घ. मूल पृ १६३१ । २ ज.ध. मूल पृ० १६३१ । क्योकि भन्तरकरणादि उपरिम अशेष अध्वानको देखते हए सख्या गुणे नीचे के अध्वानका प्रधानभावसे यहा विवक्षितपना है । ३. ज. ध मूल पृ. १६३१ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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