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________________ १८६ ] [ गाथा २३२ आगे स्थितिबन्धके क्रमकरणकालमें स्थितिबन्धोंका प्रमाण बताने के लिए कहते हैं लब्धिसार एवं पल्ले जादे बीसीया तीसिया य मोहोय । पल्लासंखं च कमे बंधेण य वीसियतियाओ || २३२ ॥ अर्थ --वीसिया ( नाम व गोत्र कर्म ), तीसिया ( ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय, वेदनीय ) और मोहनीय कर्मके स्थितिबन्धका जो क्रम पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्धके समय है वही क्रम पल्यके असख्यातवेभाग स्थितिबन्धमे भी रहता है । विशेषार्थ - - नाम व गोत्रकर्मके पल्योपमप्रमारण स्थितिवाले बन्धसे ग्रागे अन्य स्थितिबन्ध सख्यातगुणा हीन होता है, क्योकि पल्योपमप्रमाण स्थितिवालेबन्धके हो जानेपर वहासे लेकर सख्यात बहुभागोका स्थितिबन्धा पसरण होता है, यह नियम है । यहा से लेकर नाम और गोत्रकर्मके स्थितिबन्धके पूर्ण होनेपर सख्यातगुणाहीन अन्य स्थितिवन्ध होता है तथा शेष कर्मोका जबतक पल्योपम स्थितिवाला बन्ध नही प्राप्त होता, तब तक प्रत्येक स्थितिबन्धके पूर्ण होने पर पल्योपमका संख्यातवाभाग हीन अन्य स्थितिबन्ध होता है । इसप्रकार हजारो स्थितिबन्धोके बीत जाने पर ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्मो का पल्योपमवाला बन्ध होता है, क्योकि डेढ पल्योपमप्रमाण विवक्षितपूर्व स्थितिबन्ध मे से पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध के घटाने पर शेष बचे अर्धपल्योपममे एक स्थितिबन्धापसरणके आयामका भाग देनेपर सख्यातहजार सख्या ( स्थितिबन्धापसरणोकी ) प्राप्त होती है । उस समय मोहनीयकर्म का तीसरा भाग अधिक पत्योपम स्थितिवाला बन्ध होता है, क्योकि जहा तोसिय प्रकृतियोका पल्योगमप्रमाण स्थितिबन्ध होता है वहा चालीसिय प्रकृतिका कितना स्थितिबन्ध होगा इसप्रकार त्रैराशिक करके मोहूनीयका तीसरा भाग अधिक पत्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध प्राप्त होता है । तत्पश्चात् ज्ञानावरणादि चार कर्मोका भी जो अन्य स्थितिबन्ध होता है वह सख्यातगुणा हीन होता है और मोहनीय कर्मका स्थितिबन्ध विशेष हीन होता है, क्योंकि चार कर्मों के पल्योपम स्थितिवाले बन्धके बाद तब पल्योपमके सख्यात बहुभागवाला स्थितिबन्धापसरण प्रारम्भ हो जाता है, किन्तु मोहनीयकर्म पल्योपमप्रमाण स्थितिबन्ध नही प्राप्त हुआ है । इसलिये उस समय मोहनीयका स्थितिबन्धापसरण पत्योपमके
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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