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________________ गाथा १७७-१८३ लब्धिसार । १४६ का गुणश्रेणिमें निक्षेप करता है । परिणामोंके अनुसार ही गुणश्रेणि निक्षेपकों आरम्भ करता है । गुणश्रेणि आयाम सर्वत्र अवस्थित ही होता है । अथानन्तर सात गाथाओं में आचार्यदेव अल्पबहुत्वकथनकी प्रतिज्ञा पूर्वक अल्पबहुत्वका कथन करते हैं विदियकरणादु जावय देसस्तेयंतवड्डि चरिमेत्ति । अप्पाबहुगं वोच्छं रसखंडद्धाण पहुदीणं ॥१७७॥ अंतिमरसखंडुक्कीरणकालादो दु पढमो अहियो। चरिमट्ठिदिखंडुक्कीरणकालो खंखगुणिदो हु ॥१७८॥ पढमट्ठिदिखंडुक्कीरणकालो साहियो हवे तत्तो । एयंतवड्डि कालो अपुवकालो य संखगुणिदकमा ॥१७॥ अवरा मिच्छतियद्धा अविरद तह देससंजमद्धा य । छप्पि समा खंखगुणा तत्तो देसस्स गुणसेढी ॥१०॥ चरिमाबाहा तत्तो पढमाबाहा य संखगुणिदकमा । तत्तो असंखगुणिदो चरिमठिदिखंडो णियमा॥१८१॥ पल्लस्त संखभागं चरिमट्ठिदिखंडयं हवे जम्हा । तम्हा असंखगुणिदं चरिमट्ठिदिखंडयं होई ॥१८२॥ पढमे अवरो पल्लो पढमुक्कस्सं य चरिमठिदिबंधो। पडमो चरिमं पढमट्ठिदिसंतं संखगुणिदकमा ॥१८३॥ अर्थ व विशेषार्थ-अपूर्वकरण से लगाकर एकान्तवृद्धिके अन्तसमय पर्यन्त सम्भव अनुभागकाण्डकोत्कीरणकाल आदिका अल्पबहुत्व कहूंगा । एकान्तानुवृद्धिकालके भीतर जो अन्तिम अनुभागका उत्कीरणकाल है वह सबसे स्तोक है ॥१॥ उससे अपूर्व १. क. पा सुत्त पृ. ६६३ सूत्र ३१ । २. ध. पु. १२ पृ. ७६ । ३. ज.ध.पु १३ पृ. १२६-३० ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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