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________________ [ १४७ गाथा १७५ ] लब्धिसार अर्थ-एकान्तवृद्धिकालमे असख्यातगुणे क्रमसे द्रव्यका अपकर्षण होता है । बहुत स्थितिकाण्डक व्यतीत होनेपर स्वस्थान सयतासयत अर्थात् अध प्रवृत्त देशसयत हो जाता है। ___ विशेषार्थ-देशसयतके प्रथम समयसे लेकर अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त प्रतिसमय अनन्तगणी विशुद्धियुक्त बढता है सो इसे एकान्त वृद्धि कहते है। इसके कालमे प्रतिसमय असख्यातगुणे क्रमसे द्रव्यको अपकर्षित करके अवस्थित गुणश्रेरिणायाममे निक्षिप्त करता है । वहा एकान्तवृद्धिकालमे स्थितिकाण्डकादि कार्य होता है तथा बहुत स्थितिखण्ड होने पर एकान्त वृद्धिका काल समाप्त होने के अनन्तर विशुद्धताकी वृद्धिसे रहित होकर स्वस्थान देशसयत होता है इसको अधाप्रवृत्त देशसयत भी कहते है। इसका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन कोटिपूर्वप्रमाण है । ___ अब अथाप्रवृत्तसयतके काल में होने वाले कार्य विशेषका स्पष्टीकरण करते हैं ठिदिरसघादो णस्थि हु अधापवत्ताभिधाणदेसस्स । पडिउट्ठदे मुहुत्तं संते ण हि तस्स करणदुगा ॥१७॥ अर्थ-अधःप्रवृत्त देशसंयतके. स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघात नही होता । यदि देशसंयतसे गिर गया और फिर भी अन्तर्मुहूर्तकाल द्वारा वापस देशसंयत हो गया उसके भी स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघात नही होते तथा दो करण भी नही होते। विशेषार्थ-करण परिणामोंका अभाव होने पर भी एकान्तानुवृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त हुए संयमासयमके परिणामोकी प्रधानतावश स्थितिकाण्डकघात व अनुभागकाडकघात होते है, परन्तु एकान्तानुवृद्धिकालकी समाप्ति होनेपर अध प्रवृत्त देशसयतके स्थितिकाडकघात और अनुभागकाण्डकघात नही होते, क्योकि करणसम्बन्धी विशुद्धिके निमित्तसे हुआ प्रयत्न-विशेष एकान्तानुवृद्धिके अन्तिम समयमें नष्ट हो जाता है। यदि परिणाम-निमित्तके वश सयतासंयतसे च्युत होकर, किन्तु स्थिति और अनुभागमे वद्धि न कर फिर भी अतिशीघ्र अन्तर्मुहूर्तकालके भीतर ही परिणाम प्रयत्नवश संयमासयम को प्राप्त होता है, उसके भी अधःप्रवृत्त संयतासंयतके समान स्थितिघात और अनभागघात नही होता, क्योकि स्थितिवृद्धि और अनुभागवृद्धिके बिना देशसंयमको प्राप्त होने १. क. पा. सु प. ६६३ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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