SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - लब्धिसार [ [पाया १४४ "" अर्थसम्युक्त्वप्रकृतिके अन्तिम कण्डक की प्रथम फालिकेट पतन समयमे लेकर द्विचरमकालिके पतन समय पर्यन्त उदयादि गलितावशेष गुण रिंग आयाम जाननाः । अवशिष्ट अनिवृत्ति कंस्णकालके अन्तिम समयमे अन्तिम काण्डककी चरमफालिका पतन होता है 7175 1 S 528011 अंतिम समय हिन 36. विशेषार्थ - उदयादि वर्तमान समयसे लेकर यहा गुणन रिण आयाम पाया जाता"हे" इसलिये उदयादि कहते है, और एक-एक व्यतीत होते हुए एक एक समय गश्रेणिं श्रया॒ममे॑ घृ॒टता जाता है इसलिए गलितावशेष कहा है। इसप्रकार उद्या दे गलितावशेष गणश्रेणि आयाम जानना । पूर्वोक्त विधानसे अन्तिमकाण्डककी 'द्विचरमफालिका पतन होने पर काण्डको कारण कलिका अनिवृत्तिकरण कालमे एक समय अवशिष्ट रहता है । Pith hi चाड 65 TJTF 1 FTFI T} p S 10351 चरम फालिं देदिदु पढमे पव्वे श्रसंखगुणिदकमा । J ST Fist T で 17 G पल्ला लेखेज्जमूलाणि ॥१४४॥ अ 30 - - द 7P pi TH R भाज -- अर्थ - अन्तिमकाण्डककी अन्तिमफालिका द्रव्य प्रथम पर्व ( गलितावशेष 下 T गुणश्रेणि) मे असख्यात गुणितं क्रमसे दिया जाता है । अन्तिम समयमे पल्यके असंख्यात प्रथम वर्गमूल प्रमाण द्रव्य दिया जाता है । 7+ 市 T विशेषार्थ - यहा अपकर्षित होनेवाले द्रव्य का प्रमाण अन्तिमफालिके -माहात्म्यवश कुछकमोडेिढ गुणहानिगुणित 'समयंप्रबद्धप्रमाण है ऐसा ग्रहण करना चाहिए, -“क्योकि गुणश्रेणिका समस्त द्रव्य अन्तिमफालिको देखते हुए सख्यातगुणा हीन देखा - जाता है । इसको ग्रहणकर कृतकृत्य सम्यक्त्वके कालप्रमारण अधस्तन - निषेकोमे प्रदेशविन्यास करता हुआ उदयमे अल्पप्रदेशपु जको देता है, क्योकि यद्यपि वह असंख्यात -- समयप्रबद्धप्रमाण है. तथापि उसके उपरम निषेकोमे सिचित होने वाले द्रव्यकी अपेक्षा अल्प होने विरोध का प्रभाव है । तदनन्तर समयकी उपरिम स्थिति में असंख्यातगुरणा देता है | गुणकार क्या है ? तत्प्रायोग्य पत्योपमके प्रसंख्यातवे भाग - प्रमाण अड्ड गुणकार हैं । इसप्रकार द्विचरम निषेकके प्राप्त होने तक जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि अधस्तन अनन्तर निषेकके गुरणकारसे उपरिम अनन्तर निषेकका गुणकार सर्वत्र असख्यातगुणी वृद्धिरूपसे ले जाना चाहिये ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy