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गाथा १३ ] क्षपणासार
[ १७ आबाधाकालसे ऊपर जितनी भी स्थितियां हैं उनका उत्कर्षण होने पर जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अतिस्थापनावलि प्रमाण है, क्योकि अन्य प्रकार होना असम्भव है। आबाधाकालसे अधस्तनवर्ती सत्कर्म स्थितियोंका उत्कर्षण होने पर अतिस्थापना किसी स्थितिकी तो एकआवलि, किसी स्थितिकी एकसमय अधिक आवलि, किसी स्थितिकी दो समय अधिक आवलि और किसीकी तीनसमय अधिक आवलि है। इस प्रकार निरन्तर एकसमय अधिकतक बढना चाहिए जबतक उदयावलिसे बाहर अनन्त र स्थितिकी सर्वोत्कृष्ट अतिस्थापना प्राप्त नहीं होती।
शंकाः-उत्कृष्ट अतिस्थापनाका प्रमाण कितना है ?
समाधान:-जिसकर्मकी जो उत्कृष्ट आबाधा है वह एक समय अधिक आवलि से हीन आबाधा उस कर्मकी उत्कृष्ट अतिस्थापना है । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध होनेपर उत्कृष्ट आबाधा होती है और उसीके एक समय अधिक आवलिकम उत्कृष्ट आबाधा ही उत्कृष्ट अतिस्थापना होती है । उदयावलिसे बाहर अनन्तर स्थितिका उत्कणि होने पर उत्कृष्ट अतिस्थापना प्राप्त होती है।
क्षपककी प्ररूपणाके अवसरमे संसारअवस्थासम्बन्धी उत्कर्षणकी अर्थपद प्ररूपणा की गई है, क्योकि क्षपक श्रेणिमे सत्कर्मसे अधिक स्थितिबन्ध न होने से उत्कर्षण प्ररूपणा सम्भव नही है । जिसप्रकार उत्कर्षण-विषयक जघन्य-उत्कृष्टनिक्षेप और अतिस्थापनाका प्रमाण बतलाया है, उसीप्रकार अपकर्षणसम्बन्धी निक्षेप और अतिस्थापनाका भी जान लेना चाहिए । अब उन्ही उत्कर्षण-अपकर्षणसम्बन्धी अल्पबहुत्वको कहते है।
(१) उत्कर्षण की जानेवाली स्थितिका जघन्यनिक्षेप सबसे स्तोक है, क्योकि वह आवलिके असख्यातवेंभागप्रमाण है । (२) इससे अपकर्षणकी जानेवाली स्थितिका जघन्य निक्षेप असख्यातगुणा है, क्योंकि उसका प्रमाण एक समय अधिक आवलिका त्रिभाग प्रमाण है । (३) इससे अपकर्षणसम्बन्धी जघन्य अतिस्थापना कुछकम दोगुणी है, क्योंकि इसका प्रमाण एकसमयकम आवलिका दो त्रिभाग है और जघन्यनिक्षेपका प्रमाण समयाधिक विभाग प्रमाण है इसलिए जघन्य अतिस्थापना दो समयकम दगुणी है अतः विशेष अधिक है। (४) अपकर्षणसम्बन्धी उत्कृष्ट अतिस्थापना और निा
२. जयघवल मूल पृष्ठ २००८ ।
१ जयधवल मूल पृष्ठ २००७ से २०११ तक। ३. जयघवल मूल पृष्ठ २०११ ।