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________________ [ १२५ गाथा १३८ ] लब्धिसार श्रेरिणशीर्षका द्रव्य प्राप्त होता है । इस समय के गुणश्रेणिशीर्ष द्रव्यको लाने की इच्छा होनेपर एक गोपुच्छविशेषसे हीन इसी द्रव्यको स्थापित कर इस समय अपकर्षित द्रव्यके बहुभागको अन्तर्मुहूर्त कम आठवर्षों के द्वारा भाजितकर वहा प्राप्त एकभाग मात्र द्रव्य से इसे अधिक करना चाहिये और यह अधिक द्रव्य, पिछले गुणश्रेणिशीर्षमें जो गोपुच्छ विशेष अधिक है उससे तथा उसीमे अर्थात् पिछले गुणश्रेणिशीर्षमे इस समय प्राप्त हुआ जो असंख्यात समयप्रबद्धप्रमाण गुणश्रेणिसम्बन्धी द्रव्य है उससे असंख्यातगुणा है, क्योकि पल्योपमके तत्प्रायोग्य असख्यातवेभागप्रमाण अक यहां पर गुणकाररूपसे पाये जाते है परन्तु वहा के समस्त द्रव्य को देखते हुए वह असख्यातगुणा हीन है, क्योकि साधिक अपकर्षण-उत्कर्षण भागहार के द्वारा उसके खण्डित करने पर वहां जो एक भाग प्राप्त हो वह तत्प्रमाण है । इसलिये इतने मात्र अधिक द्रव्य को निकालकर और पृथक् रखकर वहां अधस्तन गुणश्रेणिशीर्ष के एक गोपुच्छ विशेष से अधिक तत्काल प्राप्त असख्यात समयप्रबद्धप्रमाण समधिक द्रव्यके निकाल देने पर अपनीत शेष जो रहे उतना पहलेके गुणश्रेरिणशीर्षसे वर्तमान गुणश्रेणिशीर्ष सम्बन्धी द्रव्य अधिक होता है ऐसा निश्चय करना चाहिए । इसप्रकार आगे भी प्रत्येक समयमे असंख्यातगुणे द्रव्यका अपकर्षणकर उदयादि अवस्थित गुणश्रेणि मे निक्षेप करनेवाले की दीयमान और दृश्यमान द्रव्यकी पूरी प्ररूपणा इसीप्रकार करनी चाहिए । इतनी विशेषता है कि आठवर्ष प्रमाण स्थिति सत्कर्मवाले जीवके प्रथम स्थितिकाडकसे लेकर द्विचरम स्थितिकाण्डकतक पतित होनेवाली इन सख्यातहजार स्थितिकाण्डको की अन्तिम फालियो मे भेद है, क्योकि उनके पतन समय गुणश्रेरिणशीर्षमे पतित होनेवाला द्रव्य वहा सम्बन्धी पूर्वके सचयरूप गोपुच्छको देखते हुए सख्यातवा भाग अधिक देखा जाता है। अब उसका अपवर्तन द्वारा निर्णय करके बतलाते है । यथा-वहा सम्बन्धी पूर्वके संचयको लाना चाहते है इसलिये डेढ गुणहानिगुणित एक समयप्रबद्धको स्थापितकर पुन. अन्तर्मुहूर्त कम आठ वर्ष प्रमाण इसका भागहार स्थापित करना चाहिए। अब प्रथम स्थितिकाडककी अन्तिम फालिका पतन होते समय काण्डक द्रव्यको लाना चाहते है इसलिये डेढगुणहानिगुणित समयप्रबद्धके अन्तर्मुहूर्तसे भाजित आठ वर्ष प्रमाण आयाम को भागहाररूप से स्थापित करना चाहिए । इसप्रकार स्थापित करने पर प्रथम स्थितिकाण्डककी अन्तिमफालिका द्रव्य आता है' । पुन इसके असख्यातवेभागप्रमाण द्रव्यको १. देशोन काण्डकद्रव्य प्रमाण आता है । अर्थात् चरमफालि द्रव्यकाण्डक द्रव्यके बहुभागप्रमाण है।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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