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________________ लब्धिसार [ गाथा १२८-१३० ११८ ] मिथ्यात्वकी दो समय स्थिति शेष रहती है उस समय वह स्तिबुक संक्रम द्वारा सजातीय प्रकृतिमे सक्रमित हो जाती है। इसलिये तदनन्तर समयमे मिथ्यात्वसम्बन्धी प्रकृति सत्कर्म, स्थितिसत्कर्म, अनुभागसत्कर्म और प्रदेशसत्कर्म नि सत्त्व हो जाते है । इसीप्रकार सम्यग्मिथ्यात्वके अन्तिमकाडककी अन्तिमफालिके कुछ कम डेढ गुणहानि समयप्रबद्धप्रमाण द्रव्यको सर्वसंक्रम द्वारा सम्यक्त्वप्रकृतिमे सक्रमित करनेपर सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसक्रम होता है, क्योकि अनिवृत्तिरूप परिणामोके द्वारा दूराप कृप्टिरूप से घातित करनेके बाद शेष बची स्थितिके जघन्य होनेमे विरोधका अभाव है, परन्तु उससमय सम्यग्मिथ्यात्वका प्रदेशसंक्रम उत्कृष्ट होता है, क्योकि गणितकर्माशिक जीवकी विवक्षामे उत्कृष्ट प्रदेशसक्रम होनेमे विरोधका अभाव है तथा उसीसमय सम्यक्त्वप्रकृतिका उत्कृष्ट प्रदेश सत्कर्म होता है, क्योकि सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोका उसमे सक्रम हुआ है । इसके पश्चात् दो समयकम उदयावलि गलित होने पर सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसत्कर्म, दो समय कालप्रमाण, एक स्थितिरूप होता है। अब मिश्रद्विक को अन्तिमफालिका गुरगश्रेणिमें निक्षिप्तद्रव्यके क्रमसहित प्रमाणादिका कथन करते हैं 'मिस्सद्गचरिमफाली किंचूणदिवड्डसमयपबद्धपमा। गुणसेडि करिय तदो असंखभागेण पुवं व ॥१२८॥ सेसं विसेसहीणं अडवस्सुवरिमठिदीए संखुद्धे । चरमाउलि व सरिसी रयणा संजायदे एत्तो ॥१२६॥ 'अडवस्तादो उवरि उदयादिअवद्विदं च गुणसेडी । अंतोमुहुत्तियं ठिदिखंडं च य होदि सम्मस्स ॥१३०॥ १ ज ध पु. १३ पृ ५१-५२-५३ । २ ज व पु १३ पृ ५५-५६ । ज ध पु. १३ पृ. ६४ । 1555 ज.ध.पू.१३ प ५६-६० व ६५-६६ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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