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________________ प्र. स चूलिका ] -1 लब्धिसार [ १०३ शंका- यह किस प्रमाण से जाना जाता है समाधान—दर्शनमोहनीय की उपशामना के सम्बन्धमे जो पचविंशति (२५) स्थानीय अल्पबहुत्वद्ण्डक कहा गया है उससे यह जाना जाता है । १ न्तर अधस्तनापेक्षा । २. ज. ध. पु ७ पृ. ३१५-१६ । जो मिथ्यादृष्टि हो गया है वह मिथ्यात्वको प्राप्त होने के प्रथमसमय मे अन्तरकाल के ऊपर दूसरी स्थिति मे स्थित प्रथम निषेक से लेकर मिथ्यात्व की अन्त कोड कोडी प्रमाण स्थिति के अन्तिम निषेक तक जितनी स्थितिया है उन सबके कर्म - परमाणुओंों में पल्यके असख्यातवे भाग प्रमाण अपकर्षण- उत्कर्षण भागहार का भाग देकर वहा जो एक भाग प्राप्त होता है उसे अन्तर को पूरा करने के लिये अपकर्षित करता है, फिर इसप्रकार अपकर्षित हुए द्रव्यमे असख्या लोकप्रमाण भागहार का भाग देकर जो एक़भाग प्राप्त हो उसमे से बहुभाग उदय मे देता है । दूसरे समयमे विशेष हीन देता है । यह विशेष का प्रमाण निषेक भागहार से ले आना चाहिए । इसप्रकार उदद्यावलि के अन्तिम समय तक विशेष हीन विशेष हीन द्रव्य देना चाहिये । यहा उदय समय से लेकर उदयावलि के अन्तिम समयतक असख्या व्यात लोक प्रतिभाग से प्राप्त हुआ एकभाग प्रमाण द्रव्यं समाप्त हो जाता है । फिर शेष प्रसंख्यात बहुभागप्रमाण द्रव्य मे से उपरिम अनन्तरवर्ती स्थिति में ' प्रसख्यातगुणे द्रव्य का निक्षेप करता है । 1 PV" P शङ्का – यहां गुणकार का प्रमारण क्या है ? समाधान — असख्यातलोक । - फिर इससे आगे की स्थिति मे दोगुणहानिप्रमाण निषेकभागहार की अपेक्षा विशेषहीन द्रव्यका निक्षेप करता है । इसप्रकार यह क्रम अनन्तरकाल के अन्तिम समय तक प्रारम्भ रहता है। इससे आगे की उपरिम स्थितिमे दृश्यमान कर्मपरमाणुओं के ऊपर असख्यातगुणे हीन द्रव्यका निक्षेप करता है फिर इससे आगे प्रतिस्थापनावलि के प्राप्त होने के पहले तक पूर्वविधि से विशेषहीन विशेषहीन द्रव्य का निक्षेप करता है । इसप्रकार दर्शन मोहोपशामना अधिकार पूर्ण हुआ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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