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________________ गाथा १०१ ] लब्धिसार [ ८५ गाथा के 'जोगे अण्णदरम्हि' का अर्थ है मनोयोग, वचनयोग और काययोग, इनमें से किसी एक योग में वर्तमान जीव दर्शनमोह की उपशमविधि का प्रस्थापक होता है । जीवप्रदेशो की कर्मो के ग्रहण में कारणभूत परिस्पन्दरूप पर्याय का नाम योग है। वह योग मनोयोग, वचनयोग और काययोग के भेद से तीन प्रकार का है। उनमे से सत्यमनोयोग मृषामनोयोग, सत्यमृषामनोयोग और असत्यमृषामनोयोग के भेद से मनोयोग चार प्रकार का है। इसीप्रकार वचनयोग भी चार प्रकार, का है। काययोग सातप्रकार का है । मनोयोग के इन भेदो मे से दर्शनमोहोपशामक के (प्रस्थापक के ) अन्यतर मनोयोग होता है, क्योकि उन चारो मनोयोग के ही यहा प्राप्त होने में किसी प्रकार का विरोध नही पाया जाता। इसी प्रकार वचनयोग का भी अन्यवर भेद होता है, किन्तु काययोग, औदारिक काययोग या वैक्रियिक काययोग होता है, क्योकि अन्य काययोग का प्राप्त होना असम्भव है । इन दस पर्याप्त योगो मे से अन्यतर योग से परिणत हुआ जीव प्रथमसम्यक्त्व को प्राप्त करने के योग्य (प्रस्थापक) होता है । शेप योगो से परिणत हुअा जीव ( प्रस्थापक ) नही होता' । इसीप्रकार निष्ठापक और मध्यमावस्था वाले जीव के भी कहना चाहिए, क्योकि इन दोनो अवस्थाप्रो मे प्रस्थापक से भिन्न नियम की उपलब्धि नहीं होती। गाथा में "जहण्णगो ते उलेस्साए" के द्वारा लेश्या का कथन किया गया है । पीत, पद्म और शुक्ल लेश्यानो में से नियम से कोई एक वर्धमान लेश्या उसके (प्रस्थापक) के होती है । इनमें से कोई भी लेश्या हीयमान नही होती । यदि अत्यन्त मन्द विशुद्धि से परिणमन कर दर्शनमोहोपशमनविधि प्रारम्भ करता है तो भी उसके तेजोलेश्या का परिणाम ही उसके योग्य होता है । इससे नीचे की लेश्याका परिणाम अर्थात् कृष्ण, नील और कापोत लेश्यारूप परिणाम नही होते, क्योकि तीन अशुभ लेश्या सम्यक्त्वोत्पत्ति के कारणरूप करण परिणाम से विरुद्ध स्वरूप है । शंका-वर्धमान शुभ तीन लेश्याओ का नियम यहा पर किया है वह नही बनता, क्योकि नारकियो के सम्यक्त्वोत्पत्ति करने में व्याप्त होने पर तीन अशुभ लेश्याए भी सम्भव है ? १. ज ध पु १२ पृ ३०६ । २. ज प पु १२ पृ. २०६ । ३. ज. ध पु १२ पृ ३०६ ।
SR No.010662
Book TitleLabdhisara Kshapanasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mukhtar
PublisherDashampratimadhari Ladmal Jain
Publication Year
Total Pages656
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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